चूहे की भूल ..........
ग़ुरबत में कोई मुरव्वत नहीं होती है ,
रोटी की तलाश हर किसी को होती है ,
मैं भी एक रोटी तलाशता हूँ हर दिन ,
बनाता भी दो अपने लिए रोज रात ,
पर कमरे का चूहा पूछता है एक बात ,
क्या आज भी मेरा हिस्सा नहीं है ,
मैंने भी तो तुम पर भरोसा किया ,
रात दिन तुम्हारे इर्द गिर्द जिया ,
कितना खाऊंगा एक टुकड़ा ही तो ,
उसके लिए भी तुमने मुझे जहर दिया ,
आदमी तुम कितने गरीब हो ,
रिश्तो के तो पूरे रकीब हो ,
जब मुझे एक टुकड़ा नहीं खिला सके ,
अपने कमरे में मुझे बसा ना सके ,
तो भला उन मानुस का क्या होगा ,
जो तेरी जिंदगी में यही कही होगा ,
कितना हिसाब लगाते होगे रोटी का ,
जहर क्या मोल है उसकी भी रोटी का ,
मैं जानता नहीं गर्रीबी क्या होती है ,
चूहा हूँ बताओ आदमियत क्या होती है .......... आलोक चांटिया
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