Sunday, July 16, 2023

चूहे की भूल .......... कविता द्वारा डॉक्टर आलोक चांटिया

 चूहे की भूल ..........

ग़ुरबत में कोई मुरव्वत नहीं होती है  ,

रोटी की तलाश हर किसी को होती है ,

मैं भी एक रोटी तलाशता  हूँ हर दिन ,

बनाता भी दो अपने लिए  रोज रात ,

पर कमरे का चूहा पूछता है एक बात ,

क्या आज भी मेरा हिस्सा नहीं है ,

मैंने भी तो तुम पर भरोसा किया ,

रात दिन तुम्हारे  इर्द गिर्द जिया ,

कितना खाऊंगा एक टुकड़ा ही तो ,

उसके लिए भी तुमने मुझे जहर दिया ,

आदमी तुम कितने गरीब हो ,

रिश्तो के तो पूरे रकीब हो ,

जब मुझे एक टुकड़ा नहीं खिला सके ,

अपने कमरे में मुझे बसा ना सके ,

तो भला उन मानुस का क्या होगा ,

जो तेरी जिंदगी में यही  कही होगा ,

कितना हिसाब लगाते होगे रोटी का ,

जहर क्या मोल है उसकी भी रोटी का ,

मैं जानता नहीं गर्रीबी क्या होती है ,

चूहा हूँ बताओ आदमियत क्या होती है .......... आलोक चांटिया

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