Friday, February 7, 2020

आज ये अंतिम मेरी कविता है

आज ये अंतिम  मेरी कविता है ,

आज ना खुश दिखती सविता है ,

अंशुमाली निरंकुश रहता मिला ,

अंशु का दिल फिर क्योंना खिला  ,,

रजनीश को देख बंद आँखे हुई ,

आलोक से बेपरवाह दुनिया हुई ,

जी लेने की चाह बस सबमे दिखी,

चौपायो की बेहतर किस्मत लिखी  ,

जाने हम कैसे मनुष्य बन ही  गए  ,

बैठे जिस जगह वो और मैले हो गए ,

कहते है फर्जी सब करते है बात,

लाया  ना ठेका कोई अपने साथ ,

गाँधी भगत थे  आये यही बताने

दुनिया बनाओ सुंदर इसे ही जताने ,

मिली क्या उनको फासी और गोली ,

आलोक अब क्यों करते हो ठिठोली ,

आदमी अगर सच आदमी ही होता ,

जंगल जानवर धरा से यू ना खोता ,

अब तो नदी , जमीं सब रो रहे है ,

देखते नही सब अब ख़त्म हो रहे है ,

बनेगा फिर कौन राम की विरासत  ,

स्वयं हो गया आदमी एक आफत ,

पहले बताओ इनको जीवन का अर्थ ,

सामने खड़ा ही अस्तित्व का अनर्थ ,

जानते नही ये अब किधर जा रहे है ,

सुबह भी हो रही है इनके लिए तदर्थ l
 आलोक चांटिया

आइये हम पहले मनुष्य होने का मतलब समझे और यह जाने कि सिर्फ हमारे दुनिया में रहने का कोई फायदा  नही अगर जंगल, जानवर , नदी नाले सब ख़त्म हो गए ..अखिल भारतीय अधिकार संगठन के मनुष्यता अभियान का हिस्सा बनिए ...और आप सभी को तदर्थ ना होने वाली सुबह के लिए सुप्रभात

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