Thursday, February 27, 2020
खुद को मनुष्य , समझने का एहसास है
खुद को मनुष्य ,
समझने का एहसास है ,
और उन्हें अपने से कम ,
जनजाति कहने का प्रयास है ,
ये जिन्दगी का कौन फलसफा ,
हमारा भी कैसा कयास है ,
थारू , भोक्सा , राजी ,भोटिया ,
क्या नाम काफी न था उनका ,
फिर जनजाति नाम है किनका ,
कहते है हम उन्हें चिडिया घर ,
का जानवर नही मानते है ,
पर आज तक उन्हें आदिम ,वनवासी ,
ही क्यों हर कही मानते है ,
न जाने कितने आधुनिक ने ,
रचाई शादी इन्ही आदिम मानव से ,
पर जाने क्यों जब तब लगते ,
ये मानवशास्त्रियो को दानव से ,
मानवाधिकार का दौर चल रहा है ,
रंग भेद का दम निकल रहा है ,
फिर भी जनजाति का हनन जरी है ,
न जाने क्या फितरत हमारी है ,
मानो ना मानो हम दुकान चलाते है ,
इन्ही के नाम पर दुनिया में जाते है ,
पर ओंगे , जारवा नचाये जाते है ,
एक रोटी के लिए रोये जाते है ,
शायद मनुष्यता का अनोखा रंग है ,
जनजाति हमारी कमी का ढंग है ,
कोई इन्हें भी दौड़ गले लगा लेता ,
मानव है ये अब तो बता देता ,
आलोक विचलित है दिल किसे बताऊ ,
काश कभी मै भी इनके काम आऊ..........................
आप सभी को लग सकता है कि मै आज कल जनजाति पर क्यों लिख रहा हूँ , क्योकि मै आज तक नही जन पाया कि हम लोग इन्ही जनजाति पर बात करके न जाने कितनी सुविधाओ में जी जाते है और देश की ६९८ जनजाति में ज्यादातर यह भी नही जानते कि आधुनिकता का मतलब क्या है ?????????????? क्या मानवधिकार उन्हें गरिमा पूर्ण जीवन जीने का अधिकार नही देता है ????????????????? डॉ आलोक चांत्तिया
समझने का एहसास है ,
और उन्हें अपने से कम ,
जनजाति कहने का प्रयास है ,
ये जिन्दगी का कौन फलसफा ,
हमारा भी कैसा कयास है ,
थारू , भोक्सा , राजी ,भोटिया ,
क्या नाम काफी न था उनका ,
फिर जनजाति नाम है किनका ,
कहते है हम उन्हें चिडिया घर ,
का जानवर नही मानते है ,
पर आज तक उन्हें आदिम ,वनवासी ,
ही क्यों हर कही मानते है ,
न जाने कितने आधुनिक ने ,
रचाई शादी इन्ही आदिम मानव से ,
पर जाने क्यों जब तब लगते ,
ये मानवशास्त्रियो को दानव से ,
मानवाधिकार का दौर चल रहा है ,
रंग भेद का दम निकल रहा है ,
फिर भी जनजाति का हनन जरी है ,
न जाने क्या फितरत हमारी है ,
मानो ना मानो हम दुकान चलाते है ,
इन्ही के नाम पर दुनिया में जाते है ,
पर ओंगे , जारवा नचाये जाते है ,
एक रोटी के लिए रोये जाते है ,
शायद मनुष्यता का अनोखा रंग है ,
जनजाति हमारी कमी का ढंग है ,
कोई इन्हें भी दौड़ गले लगा लेता ,
मानव है ये अब तो बता देता ,
आलोक विचलित है दिल किसे बताऊ ,
काश कभी मै भी इनके काम आऊ..........................
आप सभी को लग सकता है कि मै आज कल जनजाति पर क्यों लिख रहा हूँ , क्योकि मै आज तक नही जन पाया कि हम लोग इन्ही जनजाति पर बात करके न जाने कितनी सुविधाओ में जी जाते है और देश की ६९८ जनजाति में ज्यादातर यह भी नही जानते कि आधुनिकता का मतलब क्या है ?????????????? क्या मानवधिकार उन्हें गरिमा पूर्ण जीवन जीने का अधिकार नही देता है ????????????????? डॉ आलोक चांत्तिया
Friday, February 14, 2020
कहते है सब पानी सर से , ऊचा हो रहा है
-- कहते है सब पानी सर से ,
ऊचा हो रहा है ,
बस करो अब अपनी हरकत,
देश का सर नीचा हो रहा है ,
नेता है हसता सुन कर ,
कल युग में ऐसी बाते ,
कहता है कंस जिन्दा ,
देवकी रोकर काटे रातें ,
इन देश के लोगो को ,
कीड़ो की तरह रहना ,
नेता हमें बनाना ,
बस मत देते रहना ,
भेंड की तरह जीवन ,
बिन दिमाग के काम करना,
जिन्दा ये हमें रखते ,
खुद को आता है मरना ,
आलोक न जाने कब ये ,
देखे,पानी गया है सर तक ,
इनके पाप का पिटारा ,
जनता फोड़ेगी जाने कब तक ...........अब पानी सर से ऊपर जा चुका है और देश की जनता को यह सोचना होगा आप अपने बीच में एक रुपये चोरी वाले को पूरा जीवन चोर कहते है ...उसे पाने घर नही आने देते ....पूरा जीवन उसे चोर चोर कह कर लज्जित करते है...उसे जेल में सड़ा दिया जाता है......उसकी जमानत नही हो पाती.....पर एक नेता चोर होकर भी हमारे से सम्मान पता है ...हम ही कहते है कि उसका अपराध अभी सिद्ध कहा हुआ है.....उसकी जमानत हो जाती है ...चोरी के पैसे से ही वह मजा लेता है ...गाड़ी पर घूमता है ... बीमारी का बहाना करके वह जेल जाने से बच जाता है और सालो बाद उसे आरोपों से मुक्त भी कर दिया जाता है .........ऐसे लोगो के पीछे हम भागते है उन्हें नेता कह कर पूजते है और ऐसे चोरो और घोटालो में लिप्त लोगो को देश सौप देते है........कब तक हम ऐसे लोगो को देते रहेंगे .....क्या हम भी पाप में शामिल है ....पानी सर चढ़ कर बोल रहा है ......
अखिल भारतीय अधिकार संगठन आपसे जागने की अपील करता है ...........डॉ आलोक चन्टिया
ऊचा हो रहा है ,
बस करो अब अपनी हरकत,
देश का सर नीचा हो रहा है ,
नेता है हसता सुन कर ,
कल युग में ऐसी बाते ,
कहता है कंस जिन्दा ,
देवकी रोकर काटे रातें ,
इन देश के लोगो को ,
कीड़ो की तरह रहना ,
नेता हमें बनाना ,
बस मत देते रहना ,
भेंड की तरह जीवन ,
बिन दिमाग के काम करना,
जिन्दा ये हमें रखते ,
खुद को आता है मरना ,
आलोक न जाने कब ये ,
देखे,पानी गया है सर तक ,
इनके पाप का पिटारा ,
जनता फोड़ेगी जाने कब तक ...........अब पानी सर से ऊपर जा चुका है और देश की जनता को यह सोचना होगा आप अपने बीच में एक रुपये चोरी वाले को पूरा जीवन चोर कहते है ...उसे पाने घर नही आने देते ....पूरा जीवन उसे चोर चोर कह कर लज्जित करते है...उसे जेल में सड़ा दिया जाता है......उसकी जमानत नही हो पाती.....पर एक नेता चोर होकर भी हमारे से सम्मान पता है ...हम ही कहते है कि उसका अपराध अभी सिद्ध कहा हुआ है.....उसकी जमानत हो जाती है ...चोरी के पैसे से ही वह मजा लेता है ...गाड़ी पर घूमता है ... बीमारी का बहाना करके वह जेल जाने से बच जाता है और सालो बाद उसे आरोपों से मुक्त भी कर दिया जाता है .........ऐसे लोगो के पीछे हम भागते है उन्हें नेता कह कर पूजते है और ऐसे चोरो और घोटालो में लिप्त लोगो को देश सौप देते है........कब तक हम ऐसे लोगो को देते रहेंगे .....क्या हम भी पाप में शामिल है ....पानी सर चढ़ कर बोल रहा है ......
अखिल भारतीय अधिकार संगठन आपसे जागने की अपील करता है ...........डॉ आलोक चन्टिया
जीवन के स्वर , जब भी आते है
जीवन के स्वर ,
जब भी आते है ,
मौत से कुछ दूर ,
हम निकल आते है ,
खिलते है , बिखरते है ,
और मुरझाते भी है ,
पर पीछे अपनी महक ,
भी छोड़ जाते है ,
मेरी ना मानो तो ,
पूछ लो आलोक से ,
झा से सपने रोज ,
हकीकत बन के आते है ,
पूरब का मन कभी ,
भी ऊबा ही नही ,
जीवन के नित नए रंग ,
दौड़े चले आते है ,
प्रेम तो बस एक ,
कतरा है बहने का ,
मेरी तो यादो में हर ,
शख्स चले आते है ,
क्या कहू किस से ,
अब आज के दिन ,
हम तो पुरे बसंत ,
मधु मास मानते है ......................भारत हमेशा से सहिष्णु देश रहा है और हमने शक, कुषाण , हूण, अंग्रेज . फ़्रांसिसी ,डच सबको जगह दी है ...इस लिया आज अगर विश्व हमारे बसंत उत्सव से प्रभावित होकर अपने प्रेम को एक दिन दिखाना चाहता है ...तो चन्दन विष व्याप्त नही लपटे रहत भुजंग के दर्शन वाले देश को आज उसके संत को भी प्रेम के नाम पर श्रधांजलि दे देनी चाहिए ....पर हम प्रेम में उस हर बात के विरोधी है जो प्रेम को शरीर से शुरू करके शरीर तक खत्म करता है .........प्रेम, मोहब्बत , प्यार , लव , लिखने में ही अधूरे है तो इनसे ना कभी पूर्णता आ सकती है और ना ही इस के पीछे भागने का कोई अंत है ...इस लिए हमरे धर्म , साहित्य सभी ने आत्मा , रूह से प्रेम को प्राथमिकता दी है ...जो हमारे प्रेम को अमर बनता है ...क्या आपका प्रेम अमर बन ने के लिए बढ़ रहा है ??????????????????? प्रेम का अधिकार सबको है पर दिल को चोट पंहुचा कर नही ...अखिल भारतीय अधिकार संगठन प्रेम के नाम पर किसी की गरिमा को ठेस पहुचने वाले प्रेम का विरोध करते हुए और बसंत के मेले के एक काउंटर की तरह १४ फ़रवरी को भी अवसर देता है ताकि वोखुद महसूस कर ले कि भारत के प्रेम और उनके प्रेम की गहरे कहा तक है ....आप सभी को बसंत के बीच पड़ने वाले इस दिन पर भी कुछ पल रुक कर अपने ऊपर गर्व करना चाहिए कि प्रेम में राधा कृष्ण के आदर्श को जीने वाले देश में १४ फ़रवरी कूड़े से उर्जा पैदा करने वाले उपाए से ज्यादा कुछ नही ........माँ तुझे सलाम ........डॉ आलोक चाटीया
जब भी आते है ,
मौत से कुछ दूर ,
हम निकल आते है ,
खिलते है , बिखरते है ,
और मुरझाते भी है ,
पर पीछे अपनी महक ,
भी छोड़ जाते है ,
मेरी ना मानो तो ,
पूछ लो आलोक से ,
झा से सपने रोज ,
हकीकत बन के आते है ,
पूरब का मन कभी ,
भी ऊबा ही नही ,
जीवन के नित नए रंग ,
दौड़े चले आते है ,
प्रेम तो बस एक ,
कतरा है बहने का ,
मेरी तो यादो में हर ,
शख्स चले आते है ,
क्या कहू किस से ,
अब आज के दिन ,
हम तो पुरे बसंत ,
मधु मास मानते है ......................भारत हमेशा से सहिष्णु देश रहा है और हमने शक, कुषाण , हूण, अंग्रेज . फ़्रांसिसी ,डच सबको जगह दी है ...इस लिया आज अगर विश्व हमारे बसंत उत्सव से प्रभावित होकर अपने प्रेम को एक दिन दिखाना चाहता है ...तो चन्दन विष व्याप्त नही लपटे रहत भुजंग के दर्शन वाले देश को आज उसके संत को भी प्रेम के नाम पर श्रधांजलि दे देनी चाहिए ....पर हम प्रेम में उस हर बात के विरोधी है जो प्रेम को शरीर से शुरू करके शरीर तक खत्म करता है .........प्रेम, मोहब्बत , प्यार , लव , लिखने में ही अधूरे है तो इनसे ना कभी पूर्णता आ सकती है और ना ही इस के पीछे भागने का कोई अंत है ...इस लिए हमरे धर्म , साहित्य सभी ने आत्मा , रूह से प्रेम को प्राथमिकता दी है ...जो हमारे प्रेम को अमर बनता है ...क्या आपका प्रेम अमर बन ने के लिए बढ़ रहा है ??????????????????? प्रेम का अधिकार सबको है पर दिल को चोट पंहुचा कर नही ...अखिल भारतीय अधिकार संगठन प्रेम के नाम पर किसी की गरिमा को ठेस पहुचने वाले प्रेम का विरोध करते हुए और बसंत के मेले के एक काउंटर की तरह १४ फ़रवरी को भी अवसर देता है ताकि वोखुद महसूस कर ले कि भारत के प्रेम और उनके प्रेम की गहरे कहा तक है ....आप सभी को बसंत के बीच पड़ने वाले इस दिन पर भी कुछ पल रुक कर अपने ऊपर गर्व करना चाहिए कि प्रेम में राधा कृष्ण के आदर्श को जीने वाले देश में १४ फ़रवरी कूड़े से उर्जा पैदा करने वाले उपाए से ज्यादा कुछ नही ........माँ तुझे सलाम ........डॉ आलोक चाटीया
कब तलक तेरा यूं ही जाना कबूल करेंगे,.....पुलवामा के शहीद
कब तलक तेरा यूं ही जाना कबूल करेंगे,
कोई तो पल होगा जब तुझे मकबूल करेंगे,
यूं ही तो नहीं तूने अपना घर छोड़ कर,
मादरे वतन का दामन थामा था आलोक,
कब तक चंद अल्फाजों को लिख लिख,
तेरी शान में बातें रोज-रोज फिजूल करेंगे
क्या यह काफी है कि मैं सिर्फ सोशल मीडिया पर लिखकर कि आज हमारे सैनिकों क्यों बिना वजह दुनिया से जाना पड़ा था श्रद्धांजलि देते रहे या हर भारतीय को अपने अगल-बगल आगे पीछे के लिए संवेदनशील होकर इस राष्ट्र की सुरक्षा में सहयोग करना होगा सभी वीर सिपाहियों के आगे मैं शर्मिंदा हूं लज्जा में हूं क्योंकि मैं सिर्फ बात कर सकता हूं काश आप के दर्द में शरीक भी होता जय हिंद पुलवामा अंतस में वह रिश्ता हुआ दर्द है जिस पर कुछ कहना सिर्फ बेशर्मी है
आपका आलोक
कोई तो पल होगा जब तुझे मकबूल करेंगे,
यूं ही तो नहीं तूने अपना घर छोड़ कर,
मादरे वतन का दामन थामा था आलोक,
कब तक चंद अल्फाजों को लिख लिख,
तेरी शान में बातें रोज-रोज फिजूल करेंगे
क्या यह काफी है कि मैं सिर्फ सोशल मीडिया पर लिखकर कि आज हमारे सैनिकों क्यों बिना वजह दुनिया से जाना पड़ा था श्रद्धांजलि देते रहे या हर भारतीय को अपने अगल-बगल आगे पीछे के लिए संवेदनशील होकर इस राष्ट्र की सुरक्षा में सहयोग करना होगा सभी वीर सिपाहियों के आगे मैं शर्मिंदा हूं लज्जा में हूं क्योंकि मैं सिर्फ बात कर सकता हूं काश आप के दर्द में शरीक भी होता जय हिंद पुलवामा अंतस में वह रिश्ता हुआ दर्द है जिस पर कुछ कहना सिर्फ बेशर्मी है
आपका आलोक
Friday, February 7, 2020
आज ये अंतिम मेरी कविता है
आज ये अंतिम मेरी कविता है ,
आज ना खुश दिखती सविता है ,
अंशुमाली निरंकुश रहता मिला ,
अंशु का दिल फिर क्योंना खिला ,,
रजनीश को देख बंद आँखे हुई ,
आलोक से बेपरवाह दुनिया हुई ,
जी लेने की चाह बस सबमे दिखी,
चौपायो की बेहतर किस्मत लिखी ,
जाने हम कैसे मनुष्य बन ही गए ,
बैठे जिस जगह वो और मैले हो गए ,
कहते है फर्जी सब करते है बात,
लाया ना ठेका कोई अपने साथ ,
गाँधी भगत थे आये यही बताने
दुनिया बनाओ सुंदर इसे ही जताने ,
मिली क्या उनको फासी और गोली ,
आलोक अब क्यों करते हो ठिठोली ,
आदमी अगर सच आदमी ही होता ,
जंगल जानवर धरा से यू ना खोता ,
अब तो नदी , जमीं सब रो रहे है ,
देखते नही सब अब ख़त्म हो रहे है ,
बनेगा फिर कौन राम की विरासत ,
स्वयं हो गया आदमी एक आफत ,
पहले बताओ इनको जीवन का अर्थ ,
सामने खड़ा ही अस्तित्व का अनर्थ ,
जानते नही ये अब किधर जा रहे है ,
सुबह भी हो रही है इनके लिए तदर्थ l
आलोक चांटिया
आइये हम पहले मनुष्य होने का मतलब समझे और यह जाने कि सिर्फ हमारे दुनिया में रहने का कोई फायदा नही अगर जंगल, जानवर , नदी नाले सब ख़त्म हो गए ..अखिल भारतीय अधिकार संगठन के मनुष्यता अभियान का हिस्सा बनिए ...और आप सभी को तदर्थ ना होने वाली सुबह के लिए सुप्रभात
आज ना खुश दिखती सविता है ,
अंशुमाली निरंकुश रहता मिला ,
अंशु का दिल फिर क्योंना खिला ,,
रजनीश को देख बंद आँखे हुई ,
आलोक से बेपरवाह दुनिया हुई ,
जी लेने की चाह बस सबमे दिखी,
चौपायो की बेहतर किस्मत लिखी ,
जाने हम कैसे मनुष्य बन ही गए ,
बैठे जिस जगह वो और मैले हो गए ,
कहते है फर्जी सब करते है बात,
लाया ना ठेका कोई अपने साथ ,
गाँधी भगत थे आये यही बताने
दुनिया बनाओ सुंदर इसे ही जताने ,
मिली क्या उनको फासी और गोली ,
आलोक अब क्यों करते हो ठिठोली ,
आदमी अगर सच आदमी ही होता ,
जंगल जानवर धरा से यू ना खोता ,
अब तो नदी , जमीं सब रो रहे है ,
देखते नही सब अब ख़त्म हो रहे है ,
बनेगा फिर कौन राम की विरासत ,
स्वयं हो गया आदमी एक आफत ,
पहले बताओ इनको जीवन का अर्थ ,
सामने खड़ा ही अस्तित्व का अनर्थ ,
जानते नही ये अब किधर जा रहे है ,
सुबह भी हो रही है इनके लिए तदर्थ l
आलोक चांटिया
आइये हम पहले मनुष्य होने का मतलब समझे और यह जाने कि सिर्फ हमारे दुनिया में रहने का कोई फायदा नही अगर जंगल, जानवर , नदी नाले सब ख़त्म हो गए ..अखिल भारतीय अधिकार संगठन के मनुष्यता अभियान का हिस्सा बनिए ...और आप सभी को तदर्थ ना होने वाली सुबह के लिए सुप्रभात
Thursday, February 6, 2020
एक चिडिया उडी आकाश में
एक चिडिया उडी आकाश में ,
एक चिडिया उडी प्रकाश में ,
साँझ का मतलब जानती है ,
अंधेरो को भी पहचानती है ,
नन्हे पर लेकर ही जीती है ,
अजब सा साहस वो देती है ,
वो निकलना कब छोडती है ,
अपने रास्ते कब मोडती है ,
तुम चिडिया से कम नही ,
क्या तुम में कोई दम नही,
बदल डालो अपना आकाश ,
बनो लो अपने नए प्रकाश ,
साँझ से पहले संभल जाओ,
पूरब की लाली फिर बन जाओ,
ना करो भरोसा नेता पर इतना,
दूर रहो उनसे भ्रष्टाचार से जितना ,
चिडिया बाज़ से निकल जाती है ,
परगंगा को मैला निगल जाती है ,
रात को आओ फिर से समझ ले ,
मुट्ठी में आलोक पूरब से ले ले ...........देश की स्थिति समझिये और एक नए भारत के निर्माण में , महिलाओ से सम्मान में अखिल भारतीय अधिकार संगठन के साथ मिल कार्य कीजिये ...अपने मत का प्रयोग कीजिये ...
एक चिडिया उडी प्रकाश में ,
साँझ का मतलब जानती है ,
अंधेरो को भी पहचानती है ,
नन्हे पर लेकर ही जीती है ,
अजब सा साहस वो देती है ,
वो निकलना कब छोडती है ,
अपने रास्ते कब मोडती है ,
तुम चिडिया से कम नही ,
क्या तुम में कोई दम नही,
बदल डालो अपना आकाश ,
बनो लो अपने नए प्रकाश ,
साँझ से पहले संभल जाओ,
पूरब की लाली फिर बन जाओ,
ना करो भरोसा नेता पर इतना,
दूर रहो उनसे भ्रष्टाचार से जितना ,
चिडिया बाज़ से निकल जाती है ,
परगंगा को मैला निगल जाती है ,
रात को आओ फिर से समझ ले ,
मुट्ठी में आलोक पूरब से ले ले ...........देश की स्थिति समझिये और एक नए भारत के निर्माण में , महिलाओ से सम्मान में अखिल भारतीय अधिकार संगठन के साथ मिल कार्य कीजिये ...अपने मत का प्रयोग कीजिये ...
भगवान ने सूरज को पूरब में चमकाया
भगवान ने सूरज को पूरब में चमकाया ,
लोगो के दिलो में भी आलोक फैलाया ,
नींद खोलने की दवा की तरह दिवाकर ,
चेतना का संचार दिन कहलाता आकर ,
दीन हीन भी देश में अँधेरे से दूर होते ,
ठण्ड को दूर भगाते,सुख में भी खोते ,
पूरब आज फिर हमें गरम कर जायेगा ,
कोई गरीब रात में मरने ना पायेगा ,
प्रकाश में लोगो के चेहरे दिख जायेंगे ,
भेडियो से माँ के अंचल बच जायेंगे ,
क्यों नही आज तक सूरज भारत आया ,
लोकतंत्र का भाव सहीसबको बता पाया ,
कैसे वो रोकेगा फिर भ्रष्टो को आने से ,
देश के नेता का पद चुनाव में पाने से,
प्रभाकर जाकर अब लोगो को जगा दो ,
मत डालने की आग पुरे देश में लगा दो ...............आज सुबह सुबह सूरज को देख ऐसा लगा कि जब देश के लोग रोटी पानी की दौड़ में जागना ही नही चाहते तो क्यों ना उस से ही खा जाये कि अखिल भारतीय अधिकार सगठन कि प्रार्थना
लोगो के दिलो में भी आलोक फैलाया ,
नींद खोलने की दवा की तरह दिवाकर ,
चेतना का संचार दिन कहलाता आकर ,
दीन हीन भी देश में अँधेरे से दूर होते ,
ठण्ड को दूर भगाते,सुख में भी खोते ,
पूरब आज फिर हमें गरम कर जायेगा ,
कोई गरीब रात में मरने ना पायेगा ,
प्रकाश में लोगो के चेहरे दिख जायेंगे ,
भेडियो से माँ के अंचल बच जायेंगे ,
क्यों नही आज तक सूरज भारत आया ,
लोकतंत्र का भाव सहीसबको बता पाया ,
कैसे वो रोकेगा फिर भ्रष्टो को आने से ,
देश के नेता का पद चुनाव में पाने से,
प्रभाकर जाकर अब लोगो को जगा दो ,
मत डालने की आग पुरे देश में लगा दो ...............आज सुबह सुबह सूरज को देख ऐसा लगा कि जब देश के लोग रोटी पानी की दौड़ में जागना ही नही चाहते तो क्यों ना उस से ही खा जाये कि अखिल भारतीय अधिकार सगठन कि प्रार्थना
Tuesday, February 4, 2020
ऐसा नही है कि लोग मुस्कराना भूल गए है ,
ऐसा नही है कि लोग मुस्कराना भूल गए है ,
बस जलते हुए घर को बुझाना भूल गए है ,
जिन्दगी कुछ इस तरह दौड़ती भाग रही है ,
गिरते हुए लोग को हम उठाना भूल गए है ,
रात को भी दिन समझ काम से है झूझ रहे ,
आलोक के राग पर हम गुनगुना भूल गए है ,
आलोक चांटिया
बस जलते हुए घर को बुझाना भूल गए है ,
जिन्दगी कुछ इस तरह दौड़ती भाग रही है ,
गिरते हुए लोग को हम उठाना भूल गए है ,
रात को भी दिन समझ काम से है झूझ रहे ,
आलोक के राग पर हम गुनगुना भूल गए है ,
आलोक चांटिया
अंगड़ाई लेकर देखा जब
अंगड़ाई लेकर देखा जब ,
सूरज मेरे पास खड़ा था ,
पलट कर देखा शून्य मिला ,
आकाश अनंत सा पड़ा था ,
तो क्या फिर सुबह हो गई ,
खग की यात्रा शुरू हो गई
पायल की आवाज़ अभी आई ,
रसोई से एक खुशबू सी आई ,
लोरी सी आवाज़ भी पीछे ,
सुनो जल्दी उठो कब तक ????
भगवन का नाम तो ले लो ,
सोते रहो गे अब कब तक ,
मै दौड़ा बिस्तर से सरपट ,
पर नीरवता रसोई में छाई ,
ओह यह सिर्फ स्वप्न था ,
माँ मुझे ही थी याद आई ....
सुबह सबह आंचल की ममता ,
फिर बिन कहे मैंने थी पाई......................आज सो कर उठने का मन नही था पर मुझसे सैकड़ो किलोमीटर दूर माँ को शायद मेरे दर्द का एहसास आज भी हुआ और मै पूरी रात उन्ही के साथ न जाने क्या क्या सोचता रहा .और उसी को मैंने आपके साथ अभी उठने के तुरंत बाद बाटा है ...आप सभी को माँ मुबारक
सूरज मेरे पास खड़ा था ,
पलट कर देखा शून्य मिला ,
आकाश अनंत सा पड़ा था ,
तो क्या फिर सुबह हो गई ,
खग की यात्रा शुरू हो गई
पायल की आवाज़ अभी आई ,
रसोई से एक खुशबू सी आई ,
लोरी सी आवाज़ भी पीछे ,
सुनो जल्दी उठो कब तक ????
भगवन का नाम तो ले लो ,
सोते रहो गे अब कब तक ,
मै दौड़ा बिस्तर से सरपट ,
पर नीरवता रसोई में छाई ,
ओह यह सिर्फ स्वप्न था ,
माँ मुझे ही थी याद आई ....
सुबह सबह आंचल की ममता ,
फिर बिन कहे मैंने थी पाई......................आज सो कर उठने का मन नही था पर मुझसे सैकड़ो किलोमीटर दूर माँ को शायद मेरे दर्द का एहसास आज भी हुआ और मै पूरी रात उन्ही के साथ न जाने क्या क्या सोचता रहा .और उसी को मैंने आपके साथ अभी उठने के तुरंत बाद बाटा है ...आप सभी को माँ मुबारक
Sunday, February 2, 2020
उजाला भी हो जायेगा मयस्सर
उजाला भी हो जायेगा मयस्सर ,
पहले अंधेरो से तो प्यार कर लो ,
दिन भर की अपनी हकीकत में ,
थोडा सपनो को दो चार कर लो ,
कौन सोता है सिर्फ आलोक ऐसे ,
कुछ सांसो पर तो ऐतबार कर लो ,
चलो अब दुनिया में रहकर न रहे ,
ठंडक में रजाई से प्यार कर लो ,
कल फिर मिलेंगे ऐसा भरोसा है ,
ऊपर वाले को अब सलाम कर लो .........ऐसे ही रात का इस्तेकबाल करके खो जाइये प्यारी सी नींद में और इंतज़ार कीजिये जब पूरब से आलोक आपको फिर जगाने आएगा ..............शुभ रात्रि .अखिल भारतीय अधिकार संगठन की तरफ से मै आपको शु
पहले अंधेरो से तो प्यार कर लो ,
दिन भर की अपनी हकीकत में ,
थोडा सपनो को दो चार कर लो ,
कौन सोता है सिर्फ आलोक ऐसे ,
कुछ सांसो पर तो ऐतबार कर लो ,
चलो अब दुनिया में रहकर न रहे ,
ठंडक में रजाई से प्यार कर लो ,
कल फिर मिलेंगे ऐसा भरोसा है ,
ऊपर वाले को अब सलाम कर लो .........ऐसे ही रात का इस्तेकबाल करके खो जाइये प्यारी सी नींद में और इंतज़ार कीजिये जब पूरब से आलोक आपको फिर जगाने आएगा ..............शुभ रात्रि .अखिल भारतीय अधिकार संगठन की तरफ से मै आपको शु
हर मंदिर पर झुके सर तेरे आगे
हर मंदिर पर झुके सर तेरे आगे ,
फिर भी रहे सब क्यों इतना अभागे ,
भूख प्यास की मची तबाही तो देखो ,
क्या भगवान,अभी नही तुम जागे ,
कौन से अँधेरे का इंतज़ार इनका ,
आलोक इनके हिस्से का कौन मांगे ,
पत्थर के सही पर भगवान हो तुम ,
तेरे दिल की आवाज़ हो इससे आगे
फिर भी रहे सब क्यों इतना अभागे ,
भूख प्यास की मची तबाही तो देखो ,
क्या भगवान,अभी नही तुम जागे ,
कौन से अँधेरे का इंतज़ार इनका ,
आलोक इनके हिस्से का कौन मांगे ,
पत्थर के सही पर भगवान हो तुम ,
तेरे दिल की आवाज़ हो इससे आगे
हम तो जमीन से खोद कर
हम तो जमीन से खोद कर
अपनी जरूरतें निकाल लिया करते हैं
कैसे सोच लिया कि हम
तुम्हारे दिल में रहा करते है
आलोक चांटिया
अपनी जरूरतें निकाल लिया करते हैं
कैसे सोच लिया कि हम
तुम्हारे दिल में रहा करते है
आलोक चांटिया
ढलती शाम के नशे में
ढलती शाम के नशे में ,
रात की तन्हाई का आलम था ,
फकत एक पूरब ही ऐसा था ,
जिस पे ऐतबार कर मै सोया ,
किया उसने भी न फरेब ,
एक कतरा आलोक वो ले आया ,
इस दुनिया में किसे कहे अपना ,
तुम्हे या उस आफताब को ,
जो जर्रे जर्रे को जगा आया ,............सोते हम सभी इसी ख्वाब को लेकर है कि सुबह हमारे हिस्से में भी होगी पर ऐसा जरुरी नही है ...और जब आपको ऊपर वाले ने आज की सुबह में फिर यह नियामत बख्शी है .तो आइये खुश खास हो जाये ....आदाब और अखिल अखिल भारतीय अधिकार संगठन की तरफ से सलाम आप सभी को
रात की तन्हाई का आलम था ,
फकत एक पूरब ही ऐसा था ,
जिस पे ऐतबार कर मै सोया ,
किया उसने भी न फरेब ,
एक कतरा आलोक वो ले आया ,
इस दुनिया में किसे कहे अपना ,
तुम्हे या उस आफताब को ,
जो जर्रे जर्रे को जगा आया ,............सोते हम सभी इसी ख्वाब को लेकर है कि सुबह हमारे हिस्से में भी होगी पर ऐसा जरुरी नही है ...और जब आपको ऊपर वाले ने आज की सुबह में फिर यह नियामत बख्शी है .तो आइये खुश खास हो जाये ....आदाब और अखिल अखिल भारतीय अधिकार संगठन की तरफ से सलाम आप सभी को
Saturday, February 1, 2020
जो रात के अंधेरो से डरते नही
जो रात के अंधेरो से डरते नही ,
वही उजालो का इंतज़ार करते है ,
जो पश्चिम में भी देखते तरुणाई को ,
वही समझते पूरब की अरुणाई को ,
आओ आलोक में चले फिर दो पल ,
तमस का क्या भरोसा कैसा दे कल ..............आप सभी को अखिल भारतीय अधिकार संगठन के साथ सुप्रभात आइये इन पंक्तियो के साथ एक खुबसूरत दिन का आरंभ करे ताकि आपकी हसी के साथ मई अपनी चोट का दर्द भुला रहू
वही उजालो का इंतज़ार करते है ,
जो पश्चिम में भी देखते तरुणाई को ,
वही समझते पूरब की अरुणाई को ,
आओ आलोक में चले फिर दो पल ,
तमस का क्या भरोसा कैसा दे कल ..............आप सभी को अखिल भारतीय अधिकार संगठन के साथ सुप्रभात आइये इन पंक्तियो के साथ एक खुबसूरत दिन का आरंभ करे ताकि आपकी हसी के साथ मई अपनी चोट का दर्द भुला रहू
Subscribe to:
Posts (Atom)