Thursday, December 31, 2015

शुभकामना शुभकामना
नए साल का ,
सब करें सामना |
दुःख में दिखे कोई ,
दर्द को कहे कोई ,
हाथ उसी का ,
तुम थामना ,
शुभकामना शुभकामना .
सन्नाटे से पथ हो ,
रात हो अँधेरी ,
चीख सुनी कोई ,
तो उसे जानना ,
शुभकामना शुभकामना
खुशियों के पल हो ,
खुशियों के कल हो ,
जीवन ही ऐसा ,
तुम फिर बांटना,
शुभ कामना शुभकामना
नए साल का ,
सब करें सामना ....................
अखिल भरित्ये अधिकार संगठन आप सभी को आने वाले चक्रिये समय के प्रतीक नव वर्ष के लिए शुभकामना प्रेषित करता है |.......आपका आलोक चान्टिया

Tuesday, November 17, 2015

श्रद्धांजलि .पेरिस के मानव को

कितनी अजीब बात थी ,
वो एक मनहूस रात थी ,
तारो से चमकते आसमान में,
गोलियों की बरसात थी ,
आतंकवाद की फसल उगी ,
मानवता फिर हैरान थी ,
निर्दोष मर गए जाने क्यों ,
बात नही आसान थी ,
शेर भेड़िये भी हुए शर्मिंदा ,
ये उनकी कैसी पहचान थी ,
आदमी को आदमी ने मारा ,
संस्कृति की कैसी ये शान थी |......
अखिल भारतीय अधिकार संगठन पेरिस में मारे गए मानव को श्रद्धांजलि अर्पित करता है

Monday, August 31, 2015

कहते क्यों नहीं

न जाने क्यों ,
जीवन मुझे महसूस
नहीं होता |
दिन भी होता है
रात भी होती है पर ,
 महसूस नही होता|,
एक सन्नाटे सा
फैलता पसरता ,
रोज हर तरह |
एक शोर सा ,
होता अंदर जैसे,
हो कोई विरह |
सांस का होना गर ,
जीवन है आलोक ,
तो चलती क्यों नही| ,
मौत का किलोल ,
सुनती भी नहीं ,
क्यों ढंग से सही |,
मानव तो वो भी ,
जो मारते मानव को ,
हर दिन हर रात |
कहते दानव क्यों ,
नहीं उनको कभी ,
करते सच्ची बात |

Sunday, August 23, 2015

भौत आदमी से बेहतर है

मुर्दो ने पूछा ,
आज यहाँ क्यों,
आये हो ,
क्या अपने घर ,
का रास्ता भूल ,
आये हो ,
मैंने कहा सुना था ,
भूत लोगो को ,
डराते है ,
कभी सपने में ,
को कभी सामने ,
आ जाते है |
पर अब तो शहर ,
में शैतान रहने ,
लगे है ,
लोग कुछ ज्यादा ,
सहमे सहमे से ,
रहने लगे है |
सड़क , घर , रेल ,
स्कूल में शरीर ,
को खाते है |
सच में श्मशान ,
हैवानो से बचाने,
खुद को आते है |
भूत आदमी से ,
काफी अच्छा साबित ,
हो रहा है |
बलात्कार , छेड़छाड़ ,
उसे आज भी परहेज ,
हो रहा है |
.........................बचपन में भूत की कहनी सुना कर हमको डराया जाता था पर आज सड़क पर कुछ हो ना जाये इस लिए डराया जाता है क्या आदमी भूत को भी पीछे छोड़ आया ????????? आलोक चान्टिया अखिल आरतीय अधिकार संगठन ...जियो और जीने दो

Saturday, August 22, 2015

रोज नयी बात लाता हूँ

हर दिन ही तो ,
मैं खुद को तमाशा ,
बनाता हूँ ,
ना जाने कितने ,
शब्दों में रंग के ,
कोई बात लाता हूँ ,
तुम अपने नशे में ,
रोज तौलते हो ,
शब्द और मुझको,
तुमसे कह कर भी ,
दुनिया के लिए ,
क्या पाता हूँ ?
डंक मार दोगे,
आदमी का दर्द ,
जाने बिना एक बार ,
ये जान कर भी मैं ,
बिच्छू का सच लिए ,
आ जाता हूँ ,
हर दिन ही तो ,
मैं खुद को तमाशा
बनाता हूँ |
ना जाने कितने
शब्दों में रंग के
कोई बात लाता हूँ .......................शायद हम कुछ समझा नहीं चाहते इसी लिए किसी भी सुधर या नए कल में वक्त लगता है .................आलोक चान्टिया , अखिल भारतीय अधिकार संगठन

Monday, August 3, 2015

मनुष्यता का सार ...................

पतन मेरा नहीं ,
वतन का होता है ,
कोई भी काम जब
बिना जतन के होता है |
यूँ तो जी लेता है ,
हर एक कीड़ा मकोड़ा भी ,
मनुष्य कहने वालों ,
तेरा काम चमन का होता है|
क्यों इतरा गए तुम ,
शक्ति पाकर इतनी ,
मनुष्यता का सार बस ,
नमन का होता है |
अगर हम आप एक उद्देश्य के बिना काम करेंगे तो खुद तो अवनति की और जायेंगे ही और हमारा देश खुद उन्नति नहीं कर पायेगा | अखिल भारतीय अधिकार संगठन

Tuesday, January 20, 2015

औरत

आज हूँ कल ,
नही रहूंगा  ,
आज सुन लो ,
कल नही कहूँगा
क्यों मशरूफ हो ,
खुद में इतना ,
आज देख लो ,
कल नही दिखूँगा ,
मैं जानता हूँ ,
कहानी सुनते हो,
सीता की बात ,
फिर नही कहूँगा ,
आज मेरे चीर की ,
पीर सुन भी लो ,
औरत की एक बात ,
फिर न सहूँगा ,
औरत को समय दीजिये उसके लिए खड़े होइए .........अखिल भारतीय अधिकार संगठन

Sunday, January 18, 2015

मर कर देखते है

आओ एक बार ,
मर कर देखते है ,
कोई कंकड़ ,
नदी में फेकते है ,
वजूद रहे न ,
रहे बीच में कभी ,
एहसास बढ़ती ,
लहरों में देखते है ,
आओ एक बार ,
मर कर देखते है .........................जीवन में सभी का सम्मान है उसके लिए अपने को रावण मत बनाओ

तेरा इम्तहान है ...

जिन्दगी किस तलाश में,
मौत से जुदा है ,
मिल जाये तो मिटटी ,
खो जाये तो ख़ुदा है ,
दूर तलक आसमान से ,
फैले तेरे अरमान है ,
बंद मुठ्ठी में भी तेरे,
तरसा एक आसमान है ,
पकड़ता रहा ना जाने क्या,
मिटटी के घरौंदे में
गुजर रहा जो बगल से,
वो समय तेरा इम्तहान है ....................
सिर्फ समय की इज्जत कीजये और पूजिए क्योकि वही आपको बनता और बिगाड़ता है ....

रौशनी मेरा दम है

मुझको मालूम है ,
कि मेरी जिन्दगी में ,
सुबह का सबब ,
थोडा कुछ कम है ,
लेकिन जरा उन ,
अंधेरो से पूछो ,
जो मेरे साथ है,
रौशनी उनका दम है ,
बंजर सूखी जमीन ,
रौंदी गयी पावों से,
सुबह से नहीं वो भी ,
अँधेरी राह से नम है ........................
कष्ट से भागने के बजाये उनका स्वागत कीजिये क्योकि दर्द देकर ही सृजन का अर्थ स्पष्ट किया जाता है|

भरोसा करो खुद पर

जो मर गए या ,
मरे से जी रहे है ,
दरकार वही ही चार,
कंधो की कर रहे है ,
जिन्दा है जो या ,
जिन्दा समझ रहे है ,
वही आज खुद पे ,
यकीन कर रहे है ,
रास्ते वो खोजते जो,
बनाते रास्ते नहीं,
जिन्हें भरोसा पावों पर ,
आलोक वही कर रहे है .........................................शुभ रात्रि
डॉ आलोक चांटिया
अखिल भारतीय अधिकार संगठन





Thursday, January 8, 2015

कुत्ता


 कुत्ता ......................
मैं स्वामी का कुत्ता हूँ ,
स्वामिभक्त कहलाता हूँ ,
आने जाने वालो पर ,
भौंक बेवजह आता हूँ |
बेशर्म बना उनकी खातिर ,
पूँछ उठा कर चलता हूँ ,
दो रोटी पर बेचा जीवन ,
दुत्कार लिए मैं मिलता हूँ ,|
इज्जत की मैं सोचूं ना ,
तू तू करके लोग बोलते ,
नोची हड्डी पाकर भी ,
चहेरे से मैं खिलता हूँ |
काम हुआ या डर लगा ,
गोद में इनकी मिलता हूँ,
लात मिली मुझे सौगात में ,
औकात से जब मैं जलता हूँ,
कुत्ता हूँ फिर भी भरोसा ,
आदमी ही मुझ पर करता है ,
कोई ना कह दे दुम हिलाते ,
कुत्ता सुनने से डरता है |
धन्य है वो जो स्वामिभक्त ,
अंधे बनकर सब करते है ,
चाटुकार बन दुम हिलाते ,
कुत्तों का मान तो रखते है,
कर पाता जो उनकी पूजा ,
हाथ हमारे दो जो होते ,
आदमियों में कोई है अपना ,
चार पैर हमारे सार्थक होते ...........
आज पता नही क्यों ऐसा लगा कि कुत्ता का भी अपना एक दर्द होता है बस उसकी को उकेरने की कोशिश है ..................