न जाने क्यों ,
जीवन मुझे महसूस
नहीं होता |
दिन भी होता है
रात भी होती है पर ,
महसूस नही होता|,
एक सन्नाटे सा
फैलता पसरता ,
रोज हर तरह |
एक शोर सा ,
होता अंदर जैसे,
हो कोई विरह |
सांस का होना गर ,
जीवन है आलोक ,
तो चलती क्यों नही| ,
मौत का किलोल ,
सुनती भी नहीं ,
क्यों ढंग से सही |,
मानव तो वो भी ,
जो मारते मानव को ,
हर दिन हर रात |
कहते दानव क्यों ,
नहीं उनको कभी ,
करते सच्ची बात |
जीवन मुझे महसूस
नहीं होता |
दिन भी होता है
रात भी होती है पर ,
महसूस नही होता|,
एक सन्नाटे सा
फैलता पसरता ,
रोज हर तरह |
एक शोर सा ,
होता अंदर जैसे,
हो कोई विरह |
सांस का होना गर ,
जीवन है आलोक ,
तो चलती क्यों नही| ,
मौत का किलोल ,
सुनती भी नहीं ,
क्यों ढंग से सही |,
मानव तो वो भी ,
जो मारते मानव को ,
हर दिन हर रात |
कहते दानव क्यों ,
नहीं उनको कभी ,
करते सच्ची बात |
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