Wednesday, October 31, 2012

mujhko kya banaya tumne

मेरे दर्द को क्यों उकेरा तुमने ,
क्यों अपने को दिखाया तुमने  ,
कोई ख़ुशी मिली दरिया से तुम्हे ,
क्यों आँखों से आंसू बहाया तुमने ,
जमीं को दर्द देते देते आज क्यों ,
मुझे ही अपनी बातो से खोद गए ,
क्या कोई गुलाब खिलेगा कभी ,
कौन कलम आज बो गए मुझमे ,
एक बीज सा जीवन था मेरा ,
जो गिर कर भी कोपल देता है ,
क्यों पैरो से कुचल डाला तुमने ,
बस कुछ मिटटी ही तो लेता है ,
आज जान मिला जान का अर्थ ,
जब तुमने किया मुझसे अनर्थ ,
कोई बात नही स्याह में आलोक ,
अपने को उजाला बनाया तुमने ,
कह भी तो नही सकते धरती हूँ ,
हर सृजन को मैं भी करती हूँ ,
क्योकि मैं दुनिया में रहती हूँ ,
ये कैसा मुझको बनाया तुमने ,
माँ होकर भी आज कुचल गई है ,
मेरी ममता कही चली गयी है ,
किसी ने बताया है नाले के किनारे ,
माली ऐसा बीज क्यों लगाया तुमने ,
बंजर कहलाती मगर अपनी होती ,
जीती मगर अपने सपने में होती ,
अब तो जिन्दा लाश हूँ पानी में ,
मुझे साँसों बिन क्यों बनाया तुमने .........................आज न जाने कितने युवा सिर्फ इस लिए लडकियों का शोषण करते है क्योकि यह एक प्रतिस्पर्ध्त्मक खेल हो गया है .....पर वो लड़की भी इस ख़ुशी में कि कोई तो उसको पसंद करता है .....अपना सब कुछ समप्र्पित करती है ...पर परिणाम गर्भपात के बढ़ते बाज़ार और लड़कियों में बढती कुंठा जिसमे उनको विकास होने के बजये एक दर का जन्म ज्यादा हो रहा है ...........................शयद आपको यह सिर्फ एक फर्जी बात लगे पर पाने को अंदर टटोल कर इसको पढ़िए और फिर ???????????????????? शुभ रात्रि

Tuesday, October 30, 2012

aao jindgi ji le

जिन्दगी कितनी सी है ,
जिन्दगी इतनी सी हैं ,
जिन्दगी जितनी सी है ,
जिन्दगी मिटनी सी है ,
तो क्यों न मुस्करा ले ,
तुमको भी साथ हसा ले ,
कुछ तुमको भी मिलेगा ,
कुछ हमको भी मिलेगा ,
जिन्दगी चलनी सी है ,
जिन्दगी हसनी सी है ,
जिन्दगी कसनी सी है ,
जिन्दगी फसनी सी है ,
तो क्यों न इसे समझ ले ,
थोड़ी देर साथ मचल ले ,
कल किसने देखा है यहा,
आओ कुछ साथ चल ले ,
जिन्दगी आलोक सी है ,
जिन्दगी परलोक सी है ,
जिन्दगी श्लोक सी है ,
जिन्दगी मृत्यु लोक सी है ,
तो क्यों न कुछ कर ले ,
एक बार हस कर बसर ले ,
ये सच अब तो मान भी लो ,
थोडा धूप से हम पसर ले ...........................कब हम समझेंगे अपने जीवन को आज मुझे एक एस बेटी से मुलाकात हुई जिसके पिता नही थे पर न जाने उसने मुझे क्यों पिता खा और मुझे अच्छा लगा ...........क्या बेटी का सुख आपको मिला है ..शुभ रात्रि

Monday, October 29, 2012

kali

आज कली बहुत थी रोई ,
अपने में थी बस खोई खोई ,
नही चाहती थी वो खिलना ,
दुनिया से कल फिर मिलना ,
कोई हाथ बढ़ा तोड़ लेगा ,
डाली का भ्रम सब तोड़ लेगा ,
वो बेबस रोएगी जाने कितना ,
पर दर्द कौन समझेगा इतना ,
जिस डाली पर भरोसा किया ,
वही ने आज भरोसा लिया ,
खुद खामोश रही बढे हाथो पर ,
बिस्तर पर सजने दिया रातो पर ,
मसल कर छोड़ दिया नरम समझ ,
फूल तक न बनने दिया नासमझ ,
कली के जीवन में अलि नही है ,
ऐसे पराग को पीना सही नही है,
ये कैसी पहचान मिली उसको आज ,
गुलाब की कली छिपाए क्या है राज,
अपनी ख़ुशी से बेहतर कब कौन माने,
जीने की आरजू उसमे  भी कब जाने ,
जीवन का ये कैसा खेल चल रहा ,
हर डाल का फूल क्यों विकल रहा ,
क्यों नही पा रहे फूल का पूरा जीवन ,
क्यों नही कली का कोई संजीवन .....................आइये हम सब समझे कि जिस तरह लड़की को हम सिर्फ जैविक समझ कर जी रहे हैं ................क्या उनको भी कली की तरह पूरा जीने का हक़ नही है ......शुभ रात्रि 

Sunday, October 21, 2012

saanse dikhi

सभी को मेरे जनाज़े में जाने की जल्दी दिखी ,
उनको अपने घर से कुछ ज्यादा दूरी दिखी ,
मैं मातम में खुद डूबा रहा अपनी मैयत देख ,
नुक्कड़ पर चाय में डूबी मेरी कुछ बाते दिखी ,
कल मैं भूख से बेदम अपनी जान से गया था ,
आज मेरी पसंद नापसंद की होती बाते दिखी ,
कोई क्या जाने अब भी मैं धड़क रहा दिल में ,
उनके दिल से मेरी आवाज़ आज आती दिखी ,
लोग नहाकर थे लौटे मुझे छोड़कर अब वहा,
उसकी आँखों में मेरी यादे नहाते फिर दिखी ,
तडपा मैं कितना उसकी यादो में हर पल हूँ ,
रोज चादर पे सिलवटे उसके  पड़ती दिखी ,
सूनी सी डगर सी अब मांग उसकी है रहती .
लाली सिंदूर की आज उसकी आँखों में दिखी ,
माफ़ कर दो जिन्दगी आलोक की बेवफाई ,
मौत से इश्क करती शमशान में साँसे दिखी ................................आइये हम सब एक बार ये जान ले की जिसको जिन्दगी कह कर हम इतना इतर रहे हैं .वो हकीकत में मौत ही है ................पर उसके आने से पहले का नाम जिन्दगी है ........तो क्या आप जिन्दगी जी पाए या फिर सिर्फ खाने , सोने को ही जिन्दगी समझ बैठे है ....किसी के लिए जी कर देखिये जानवर से थोडा अलग पहचान बनाइए ..शुभ रात्रि

Saturday, October 20, 2012

ek kilo rishta

आज एक किलो रिश्ता ,
खरीद कर लाया हूँ ,
पचास किलो शरीर में ,
किसी को रखने की ,
फुर्सत की नही मिलती ,
इसी लिए बाज़ार से ,
जीने के लिए उठा लाया हूँ ,
ये देखो एक किलो रिश्ता ,
तुम्हारे लिए भी ले आया हूँ ,
बात भी डालो कितना दूँ ,
क्या कुछ भी नही चाहते ,
फिर मानव क्यों हो बताते ,
सिर्फ जिस्म में गोश्त ही नही ,
एक भावना भी खेलती है ,
जो बनती है मुझको यहाँ ,
पिता , चाचा , मामा , फूफा ,
दादा , नाना ,और पति , प्रेमी भी  ,
तुम भी तो बनती हो यहाँ ,
माँ , चाची. मामी , बुआ ,
दादी , नानी और पत्नी प्रेमिका भी ,
पर आज हम क्यों भाग रहे है ,
दिन रात जाग रहे है ,
कहा और कब खो गए रिश्ते ,
क्या मिल पाएंगे कभी रिश्ते ,
सुना है अब कंपनी भी बेचती है ,
कुछ रगीन दुनिया खिचती है ,
और हम फिर से बिकने लगे ,
आदमी में जानवर दिखने लगे ,
देखो आज मैं रिश्ते ताजे लाया हूँ ,
आओ जल्दी ले लो दौड़ो दौड़ो ,
बड़ी मुश्किल से एक किलो पाया हूँ ,
चाहो तो काट कर खा लो या ,
पी लो एक गिलास में भर कर ,
पर रिश्ते की खुराक लेना न छोडो ,
इस दुनिया को फिर न मोड़ो ,
वरना जानवर हम पर हसने लगेंगे ,
फब्तिय हम पर कसने लगेंगे ,
कैसे कहेंगे हम है इनसे बेहतर ,
जब पाएंगे हमको कमतर ,
तो लो अब मुह न मोड़ो रिश्तो से ,
जी   लो थोडा  अब रिश्तो से ,
कब तक चलोगे किश्तों से ,
आओ हमसे कुछ रिश्ते ले लो ,
रिश्ते को रिसने से तौबा कर लो .........................रिश्तो को दीमक क्यों लग रही है ...............हम रिश्ते से ज्यादा मैं में डूब कर बस एक शरीर से जय कुछ नही रह गए .....शुभ रात्रि

Friday, October 19, 2012

rishta

लोग मुर्दे पर पैसे चढ़ा गए ,
कितना चाहते बता गए ,
दिल में दया भी है उनके ,
भिखारी को आज बता गए ,
भूख से बिलखते बच्चे को ,
जनसँख्या का दर्द बता गए ,
एक पल भी नही था पास में ,
बस पैसे से ही रिश्ता बता गए ,
खर्च तो करता हूँ सब कुछ ,
कितने खोखले है बता गए ,
एक अदद रोटी क्यों बनाये ,
लंगर में जाने को बता गए ,
आलोक को खरीदने का हौसला ,
असमान को जाने क्यों बता गए ,
मुट्ठी में बंद कौन कर पाया है ,
आलोक को बिकना बता गए ,
कितनी सिद्दत से सजाई दुनिया ,
दुकान का मतलब वो बता गए ,
रीता रीता सा रहा दिल आज फिर ,
खून बिकता है वो भी बता गए ,
आंसू भी बिकता है अब यहा पर,
सच को मेरे वो नाटक बता गए  ,
इतनी लम्बी जिन्दगी में कौन अपना ,
बिकती साँसों का राज बता गए ,
कोई खरीद कर जला दो मुझको ,
शमशान में लकड़ी मुझे दिखा गए ,
जाना है उनको  भी यहा से एक दिन ,
मुझको कफ़न खरीदना सीखा गए ...........................पता नही इस दुनिया में हम मनुष्य बन कर किस मनुष्य को ढूंढते है ..........................पर अब तो सब कुछ पैसा से तौला जा रहा है .................क्या हमें रुकना नही चाहिए .......शुभ रात्रि

Wednesday, October 17, 2012

jindgi meri chita me lgi

इतना जी चुका जिन्दगी तुझको ,
चलो कही से मौत खरीद लाये ,
रोज रोज साँसों के दौर से ऊबा ,
कुछ देर तो सुकून के कही पाए ,
याद है कल जब मैं भूखा था यहाँ ,
सब मौत की तरह खामोश थे वहा,
मैं दौड़ा हर तरफ पानी के लिए ,
पर सारे कुओं का पानी था कहा
जो हो रहा भगवान ही तो कर रहा ,
फिर दुःख में इन्सान क्यों मर रहा ,
क्यों भागते सब कुछ पाने के लिए ,
संतोष से क्यों नही अब कोई तर रहा ,
मेरे घर में अँधेरा गर्भ की तरह ही है ,
क्या सृजन का प्रयास इस तरह ही है ,
भगवान के घर देर है पर अंधेर तो नही,
पर गरीब बना कर ये न्याय तो नही है ,
अब थक गया आलोक चिराग जला कर ,
शांति शायद मिलेगी मिटटी में मिला कर ,
आओ रुख कर ले अपने जीवन के सच में ,
लोग लौट पड़े आग चिता में मेरी लगा कर ................................आदमी की आदमी के लिए बेरुखी और अपने लिए ही जीने की आरजू ने जानवरों को सोचने के लिए मजबूर कर दिया है कि अब वो मानव किसको माने........शुभ रात्रि




Tuesday, October 16, 2012

nav ratri me aurat

दुर्गा कह कर मजाक उड़ा रहे है ,
पूरे देश हम औरत जला रहे है ,
कितने ही नव दुर्गा कहते तुमको ,
बलात्कारी फिर कौन होते जा रहे है ,
कन्या तो देवी का रूप कही जाती है ,
माँ की कोख में ही क्यों मारे जा रहे है ,
कितना झूठ  जीने  की हसरत तुममे ,
रोज घुंघरू ही क्यों बजते जा रहे है ,
कितने ही कह जायेंगे आलोक बरबस ,
तुम क्यों महिसासुर बनते जा रहे हो ,
रह तो जाने दो कम से कम नव दुर्गा ,
नव महीने उसके ही छीने जा रहे हो ,
कल जब काली न दुर्गा मिलेंगी तुम्हे ,
फिर ये व्रत किसका रखे जा रहे हो ,
कभी तो शर्म करो अपनें दोमुह पर ,
किसका आंचल फाड़े जा रहे हो ,
आज माँ का दिन सच कह लो उससे ,
कल फिर ये शब्द भूले जा रहे हो ,
जय माता दी अपने  दिल में बसा लो ,
क्या उसको हसी फिर दिए जा रहे हो .......................अगर इस देश में नारी के लिए इतना बड़ा व्रत रखने के बाद भी औरत की संख्या कम हो रही है या फिर उसके साथ बलात्कार हो रहा है तो ऐसे नवरात्री को हम क्या करने के लिए मना रहे है ....................कम से कम नव दिन तो औरत में सिर्फ दुर्गा देखिये

Monday, October 15, 2012

mar rha hai .................

न जाने क्यों ,
मन नही लग रहा है ,
लगता है आज फिर ,
कोई अंदर जग रहा है ,
बोलता नही मगर ,
जाने क्या चल रहा है ,
ये कैसी है अकुलाहट ,
जो वो मचल रहा है ,
रात का अँधेरा ,
क्यों नही कट रहा है ,
भोर का उजाला ,
क्यों पीछे हट रहा है ,
आलोक क्यों नही है ,
ये कौन भटक रहा है ,
वो कौन जो गया है ,
कल तक निकट रहा है ,
आकर भी न जान पाए ,
किससे जीवन लिपट रहा है ,
साँसों को बेच तू भी  ,
मौत को ही झपट रहा है ,
पाया भी क्या है खोकर ,
हर झूठ  बदल रहा है ,
जलती चिता में देखो ,
तू मिटटी सा निकल रहा है ,
जिन्दगी को जो कभी भी ,
ना अपनी  समझ रहा है ,
नाम रहा है उसकी का ,
जो किसी के लिए मर रहा है ...........................अगर हम जानवर से ऊपर उठाना चाहते है तो आदमी को किसी के लिए जीना आना चाहिए ....................वरना हम को मनुष्य कौन और किसके लिए कहा जायेगा ..............शुभ रात्रि

Sunday, October 14, 2012

chinti

चींटी की तरह कुचले जा रहे हो ,
मेरी लाश से होकर कहा जा रहे हो ,
मैं भी तो निकली थी एक सपना लिए ,
मेरी हकीकत को भी मिटा जा रहे हो ,
सिर्फ मुझको मसलने के लिए ही क्यों ,
मेरे अस्तित्व तक को  नकारे जा रहे हो ,
क्यों नही है दूर तक जाने का मेरा सच ,
बस अपने को अपनों में पुकारे जा रहे हो ,
मालूम है मेरे भी अपने रोते है न आने पर ,
मेरी शाम को क्यों आंसू दिए जा रहे हो ,
कहा ढूंढे मेरे होने के निशान इस दुनिया में ,
तुम हत्यारे होकर भी क्यों मुस्कारे रहे हो ,
मेरी नियत यही तो न थी कि कोई मारे,
अपनी ख़ुशी में मेरी ख़ुशी क्यों जला रहे हो ,
मैं  भी हसने के लिए तुझे होकर ही गुजरी ,
अपने दामन से क्यों मुझे रगड़े जा रहे हो ,
कब तक चींटी कह कर मुझे मिटाते रहोगे ,
औरत को आज  ये क्या दिखाते जा रहे हो ,
मेरी ही तरह तो है तेरी माँ भी घर में देखो ,
फिर मुझे मादा कह क्यों जलाते जा रहे हो ,............................................आइये हम समझे इनका दर्द और कुछ बदल कर दिखाए इनका भी कल और आज ...........................आखिर ये है तभी तो है मेरा आपका वजूद .....................शुभ रात्रि

Thursday, October 11, 2012

usko pana

क्यों लिखूं कुछ ऐसा जो ,
दिल की कहानी कह जाये ,
क्यों दिखाऊ कुछ ऐसा जो ,
आँखों से बह निकल जाये ,
मेरे घर में अँधेरा ही रहा ,
आंगन में उसके धूप खिली ,
अकेले जीवन पे जाने कब वो,
राह में मुझको खड़ी मिली ,
हर बात को मेरे काँटों सा माना,
रिश्ते को कब किसने मेरे जाना ,
रह गया दूर अँधेरे से आलोक ही ,
स्मृति शेष है अब उसका आना ,
बता देना पश्चिम में गया हूँ मैं ,
अब मुश्किल है लगता तुरंत पाना ,.............................कौन है  वो जानते हैं ??????????????? जी जी मेरी सांसे जिनको मैं समझ ही नही पाया और अब अपने अंत के लिए तैयार हूँ ........क्या आपको अपने बारे में पता हैं ?????????????/शुभ रात्रि

Wednesday, October 10, 2012

basera

किस को सुनाऊ दर्द ,
सर्द है चेहरा मेरा ,
किसको कहूँ खुदगर्ज,
गर्ज पर नही सवेरा ,
मिलता नही जो चाहो ,
न चाहा साथ हो तेरा ,
मगर रास्ते कटते नही ,
नही शमशान में डेरा ,
आलोक न हो जहाँ ,
क्यों न हो वहां अँधेरा ,
जिन्दगी जब तुझको चाहा ,
मौत का पसरा बसेरा................................ 

Saturday, October 6, 2012

koi prasang to nhi hai

क्यों इतना मन अशांत ,
शांत सागर सा तो नही है ,
क्यों थक रहे है पैर आज ,
कल सांसो का अंत तो नही है ,
चले साथ उमंग को लेकर ,
देकर उम्र कही ये भंग तो नही है ,
क्या लाये थे तो लेकर जाये ,
आये यहा जो कोई जुर्म तो नही है,
मिल कर नही चले तो क्या ,
अकेले थे आये ये जंग तो नही है ,
आलोक की चाहत अंधेरो में ,
अंधेरो में रहना कोई ढंग तो नही है ,
मैं जो छोडू निशान को अपने ,
अपनों में रहना कोई रंग तो नही है ,
अक्सर तुम आते यादो में मेरी ,
मेरी यादो में रहना कोई संग तो नही है ,
अक्सर मुझे कोई सोता मिला है ,
सपनो में आना कोई प्रसंग तो नही है ....................................कुछ अमूर्त लिखने की चाहत में आज अचानक अपनी तबियत के ख़राब होने पर मैंने यह लाइन लिखी ...................पता नही मुझे अक्सर यही लगता है की एक जानवर अपने पराये लोगो घर सबकी पहचान कर लेता है पर हम मनुष्य होकर भी क्यों ऐसे नही हो पाए एक देश तक के होकर नही हो पाते ??????????? क्या आप देश के लिए सोच पाए .........अखिल भारतीय अधिकार संगठन
 

Friday, October 5, 2012

andhere me kyo rhe

क्यों इतनी है धूप,
छाँव की आस नही ,
क्यों प्यासा है मन ,
नीर क्यों पास नही ,
बादल है चहुँ ओर,
खेत क्यों सूख रहे ,
अनाज भरे मठोर,
बच्चे क्यों भूखे रहे ,
आलोक पास में सबके ,
फिर अँधेरे में क्यों रहे............................

Thursday, October 4, 2012

jindgi bhi udhar ki rhi

जिन्दगी ले कर आया हूँ ,
जिन्दगी देकर जा रहा हूँ ,
इस दुनिया से  क्या कहूँ ,
लाश बन कर जा रहा हूँ ,
लोग कह क्यों रहे स्वार्थी ,
हा अर्थी ही सजा रहा हूँ ,
क्या मैं साधू नही लगता ,
जब सब छोड़े जा रहा हूँ ,
आलोक देखते थक गया ,
अँधेरे से इश्क लड़ा रहा हूँ ,
किलकारी-बोलने का सफर ,
तेरी यादो में छिपा रहा हूँ ,
कल रास्तो का सन्नाटा देखो ,
मेरे निशान न ढूंढ़ना कभी ,
ये तो दुनिया का दस्तूर था ,
आना है किसी और को अभी ........................................आज सतर्कता विभाग के अधीक्षक श्री वी ड़ी शुक्ल ने जब मुझसे पूछा कि मैं क्या सोच कर जिन्दगी में इतने कठिन रास्तो पर चल रहा हूँ तो मैंने उनसे कहा कि जब मैं जान लेकर इस दुनिया में आया और एक दिन ये दुनिया मेरी जान तक ले लेगी ....तो इस दुनिया से कैसा लगाव ............जब जान तक मेरी नही रहगी तो कौन और ???????????????? सोचिये और फिर सोचिये .....बस सोचिये कि एक दिन आपको अपनी जान तक इस दुनिया में छोड़ जानी हैं .................तो ...................शुभ रात्रि