Sunday, May 31, 2020
Thursday, May 28, 2020
जीवन में मेरे क्यों नहीं आता है संतोष.............ALOK CHANTIA
जीवन में मेरे क्यों नहीं आता है संतोष .....................
सड़क पे सोने वालो क्यों होता नहीं रोष ......................
शीतल कमरों में आती क्यों नहीं है नींद ......................
मिटटी पे सोने वालो को रहता नहीं है होश ...................
ये मेरा कुसूर या भगवन है सिर्फ तेरा .................
पसीने से नहाये मजदूरो को देते हो जोश .............
कैसी बनायीं दुनिया और दुनिया में लोग ..................................
कोई शराब तो कोई मेहनत से होता मदहोश ................
आज की रात फिर बिजली नहीं है दीवारों में ...........
आलोक बिना सड़को पे जिन्दगी का क्या दो
तमस से निकलने का रास्ता ढूंढा सबने...........ALOK CHANTIA
तमस से निकलने का रास्ता ढूंढा सबने ,
नींद कहकर आँख बंद कर ली सबने ,
कहने की जरूरत आलोक का मतलब ,
जीवन कह कर कर्म किया फिर सबने ........................अखिल भारतीय अधिकार संगठन का नमन और सुप्रभात
गरम हवाओ ने रात को जगा दिया...........आलोक चांटिया
गरम हवाओ ने रात को जगा दिया ,
पता नही कहा नींद को भगा दिया ,
सभी झाकते रहे सुबह की तलाश में ,
ना जाने जेठ ने ये कैसा जादू किया .....................गर्मी से हम सब ऊबे है और थोड़ी ठंडक की तलाश है पर गर्म हवाओ ने कुछ ऐसा किया किया की सुबह की तपिश ही अच्छी लगती है रात से | अखिल भारतीय अधिकार संगठन आपके अच्छे स्वस्थ्य की कामना करता है }
थक कर चूर चूर ................आलोक चांटिया
थक कर चूर चूर कहे मन मयूर ..................सपनो की दुनिया आ रही है ...............साँसों के सरगम अंधेरो में आकर ........................कोई नयी सोच पलकों में पा रही है .................खोया है दिन का आलोक का साया ..........................चांदनी में सज कर देखे कौन आया ......................नींद के बहाने लोग मिलते बहुत है ...................खुली आँखों से जिनको ना मैंने है पाया
देखिये ये माँ नहीं ......आलोक चांटिया
गंगा है ,
और सोचिये आदमी ,
कितना नंगा है ,
रोज तन मन को ,
गुमराह कराती ,
घुंघरुओं की आवाज ,
में समाती देश की ,
लज्जा की तरह ,
तुम क्यों आदमी पर ,
भरोसा कर आ गयी ,
इन फितरती लोगो ,
से देखो क्या पा गयी ,
कल तक तेरे आँचल,
से अमृत पीते थे ,
मरते दम तक तेरी ,
बून्द से जीते थे ,
पर आज तुम खुद ,
अपने में लाचार हो ,
फिर भी उसकी पहचान ,
और एक प्रचार हो ,
एक बार तू सोच जरा ,
कब तक यहा नारी ,
भावना में लुटती रहेगी,
कहलाएगी माँ गंगा और ,
खुद जीने को तरसती रहेगी .........................हमें अपनी कथनी करनी में अंतर करना होगा तभी जीवन और नारी के हर स्वरुप को पारदर्शी हम बना पाएंगे ...............
Monday, May 25, 2020
Sunday, May 24, 2020
Saturday, May 23, 2020
आज लोग क्यों मुझे ..........by Alok chantia
आज लोग क्यों मुझे
मुझे आवारा कह गए l
जमीन के टुकड़े बस ,
बंजर से अब रह गए l
न बो सका एक बीज ,
न की कोई ही तरतीब l
पसीने का एक कतरा,
भी नही बहाया मैंने l
ना तो मैं कभी थका,
और ना ही उतारी थकान l
आलोक कैसे चुनता अँधेरा ,
फिर कैसे होता सृजन महान l
आज मुझे आवारा कह कर ,
क्यों बादल बना रहे हो ?
धरती की अस्मिता को ,
घाव सा हरा करा रहे हो l
कहते क्यों नहीं तुम्हे ,
अपने सुख की आदत है l
तुम्हारी ख़ुशी के लिए ,
जमी की आज शहादत है l
जी लेने दो हर टुकड़े को ,
बस वही सच्ची इबादत है l.............
आलोक चांटिया
.पता नहीं क्यों मानव ने संस्कृति बनाने के बाद एक अजीब सी फितरत पाल ली कि अगर लड़का लड़की साथ में है तो सिर्फ एक ही काम होगा या फिर लड़की का मतलब ही सिर्फ एक ही है अगर आप अकेले है तो आप से कोई जरूर पूछ लेगा क्या भाई ???????????कोई मिली नहीं क्या ? अगर किसी के साथ है तो और भाई आज कल तो आपके बड़े मजे है शायद इसी मानसिकता के लिए हमने संस्कृति बनाई ....सोचियेगा जरूर
Friday, May 22, 2020
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