वो चुप रह कर
औरत का बीच चौराहे
पर चीर हरण
करवाते है ,
मारना पीटना .
गाली उत्पीड़न देख
कर भी चुप रह जाते है ,
क्योकि वो भीष्म है
शासन की कुर्सी
से आज भी बंधे है ,
सब कुछ देखते है
पर आँखों के सामने
उनके बच्चे ,
उनका वेतन
उनका भविष्य
घर परिवार की जिम्मेदारियां
हस्तिनापुर बन कर
सामने आ जाते है |
और वो सब देख कर भी
चुप रह जाते है ,
अनसुना कर जाते है |
क्योकि वो जानते भी है
और मानते भी है ,
द्रौपदी खुद ही उनके
विनाश की शपथ लेगी ,
आदमी से ज्यादा
कृष्ण से रोयेगी ,
उसकी गरिमा , अस्मिता
का अविरल युद्ध ,
खून से लेथ पथ ,
उन्ही के सामने होगा
अब बारी समाज की होगी
कलम के डेकन की होगी |
कोई द्रौपदी पर
कविता लिख डालेगा
कोई उसे महान
महिला कह डालेगा ,
कोई उस पर कहानी
उपन्यास , नाटक ,
की रचना करेगा
खुद को साहित्यकार
बना कर मंडन करेगा
पर चौराहे पर नग्न
इज्जत को देख चुप रहेगा
खुद की दो रोटी
और इज्जत से ज्यादा
वो क्यों कुछ भी
कभी भी खुल कर
औरत के लिए कहेगा
कल आज और कल
औरत यूँ ही खुद
को आजमाती रहेगी
और किसी मंच से
कहानी नाटक , नौटंकी
कविता चलती रहेगी ,
लेखनी के दलाल
कभी औरत के लिए
नहीं लौटायेंगे अपने
शाल ,और सम्मान
क्योकि वो भी तो
कलम की भूख में
चाहते औरत का अपमान |
द्रौपदी कितनी कातर है
देख अपना ये सिलसिला
कल भी और आज भी
घर के बहार क्या मिला !!!!!!!!!!!!!!!!!!
आइये औरत के लिए कुछ दिन कुछ पल सच के लिए जिए मैंने ये लाइन उन उच्च कोटि के साहित्यकारों को समारित की है जो ये जानने के बाद भी की लड़की के साथ अन्याय हुआ है वो लड़की पर ही ऊँगली उठा कर अपने को साहित्यकार बनाने में जुटे रहते है ...............डॉ आलोक चान्टिया , अखिल भारतीय अधिकार संगठन
औरत का बीच चौराहे
पर चीर हरण
करवाते है ,
मारना पीटना .
गाली उत्पीड़न देख
कर भी चुप रह जाते है ,
क्योकि वो भीष्म है
शासन की कुर्सी
से आज भी बंधे है ,
सब कुछ देखते है
पर आँखों के सामने
उनके बच्चे ,
उनका वेतन
उनका भविष्य
घर परिवार की जिम्मेदारियां
हस्तिनापुर बन कर
सामने आ जाते है |
और वो सब देख कर भी
चुप रह जाते है ,
अनसुना कर जाते है |
क्योकि वो जानते भी है
और मानते भी है ,
द्रौपदी खुद ही उनके
विनाश की शपथ लेगी ,
आदमी से ज्यादा
कृष्ण से रोयेगी ,
उसकी गरिमा , अस्मिता
का अविरल युद्ध ,
खून से लेथ पथ ,
उन्ही के सामने होगा
अब बारी समाज की होगी
कलम के डेकन की होगी |
कोई द्रौपदी पर
कविता लिख डालेगा
कोई उसे महान
महिला कह डालेगा ,
कोई उस पर कहानी
उपन्यास , नाटक ,
की रचना करेगा
खुद को साहित्यकार
बना कर मंडन करेगा
पर चौराहे पर नग्न
इज्जत को देख चुप रहेगा
खुद की दो रोटी
और इज्जत से ज्यादा
वो क्यों कुछ भी
कभी भी खुल कर
औरत के लिए कहेगा
कल आज और कल
औरत यूँ ही खुद
को आजमाती रहेगी
और किसी मंच से
कहानी नाटक , नौटंकी
कविता चलती रहेगी ,
लेखनी के दलाल
कभी औरत के लिए
नहीं लौटायेंगे अपने
शाल ,और सम्मान
क्योकि वो भी तो
कलम की भूख में
चाहते औरत का अपमान |
द्रौपदी कितनी कातर है
देख अपना ये सिलसिला
कल भी और आज भी
घर के बहार क्या मिला !!!!!!!!!!!!!!!!!!
आइये औरत के लिए कुछ दिन कुछ पल सच के लिए जिए मैंने ये लाइन उन उच्च कोटि के साहित्यकारों को समारित की है जो ये जानने के बाद भी की लड़की के साथ अन्याय हुआ है वो लड़की पर ही ऊँगली उठा कर अपने को साहित्यकार बनाने में जुटे रहते है ...............डॉ आलोक चान्टिया , अखिल भारतीय अधिकार संगठन
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