Tuesday, January 20, 2015

औरत

आज हूँ कल ,
नही रहूंगा  ,
आज सुन लो ,
कल नही कहूँगा
क्यों मशरूफ हो ,
खुद में इतना ,
आज देख लो ,
कल नही दिखूँगा ,
मैं जानता हूँ ,
कहानी सुनते हो,
सीता की बात ,
फिर नही कहूँगा ,
आज मेरे चीर की ,
पीर सुन भी लो ,
औरत की एक बात ,
फिर न सहूँगा ,
औरत को समय दीजिये उसके लिए खड़े होइए .........अखिल भारतीय अधिकार संगठन

Sunday, January 18, 2015

मर कर देखते है

आओ एक बार ,
मर कर देखते है ,
कोई कंकड़ ,
नदी में फेकते है ,
वजूद रहे न ,
रहे बीच में कभी ,
एहसास बढ़ती ,
लहरों में देखते है ,
आओ एक बार ,
मर कर देखते है .........................जीवन में सभी का सम्मान है उसके लिए अपने को रावण मत बनाओ

तेरा इम्तहान है ...

जिन्दगी किस तलाश में,
मौत से जुदा है ,
मिल जाये तो मिटटी ,
खो जाये तो ख़ुदा है ,
दूर तलक आसमान से ,
फैले तेरे अरमान है ,
बंद मुठ्ठी में भी तेरे,
तरसा एक आसमान है ,
पकड़ता रहा ना जाने क्या,
मिटटी के घरौंदे में
गुजर रहा जो बगल से,
वो समय तेरा इम्तहान है ....................
सिर्फ समय की इज्जत कीजये और पूजिए क्योकि वही आपको बनता और बिगाड़ता है ....

रौशनी मेरा दम है

मुझको मालूम है ,
कि मेरी जिन्दगी में ,
सुबह का सबब ,
थोडा कुछ कम है ,
लेकिन जरा उन ,
अंधेरो से पूछो ,
जो मेरे साथ है,
रौशनी उनका दम है ,
बंजर सूखी जमीन ,
रौंदी गयी पावों से,
सुबह से नहीं वो भी ,
अँधेरी राह से नम है ........................
कष्ट से भागने के बजाये उनका स्वागत कीजिये क्योकि दर्द देकर ही सृजन का अर्थ स्पष्ट किया जाता है|

भरोसा करो खुद पर

जो मर गए या ,
मरे से जी रहे है ,
दरकार वही ही चार,
कंधो की कर रहे है ,
जिन्दा है जो या ,
जिन्दा समझ रहे है ,
वही आज खुद पे ,
यकीन कर रहे है ,
रास्ते वो खोजते जो,
बनाते रास्ते नहीं,
जिन्हें भरोसा पावों पर ,
आलोक वही कर रहे है .........................................शुभ रात्रि
डॉ आलोक चांटिया
अखिल भारतीय अधिकार संगठन





Thursday, January 8, 2015

कुत्ता


 कुत्ता ......................
मैं स्वामी का कुत्ता हूँ ,
स्वामिभक्त कहलाता हूँ ,
आने जाने वालो पर ,
भौंक बेवजह आता हूँ |
बेशर्म बना उनकी खातिर ,
पूँछ उठा कर चलता हूँ ,
दो रोटी पर बेचा जीवन ,
दुत्कार लिए मैं मिलता हूँ ,|
इज्जत की मैं सोचूं ना ,
तू तू करके लोग बोलते ,
नोची हड्डी पाकर भी ,
चहेरे से मैं खिलता हूँ |
काम हुआ या डर लगा ,
गोद में इनकी मिलता हूँ,
लात मिली मुझे सौगात में ,
औकात से जब मैं जलता हूँ,
कुत्ता हूँ फिर भी भरोसा ,
आदमी ही मुझ पर करता है ,
कोई ना कह दे दुम हिलाते ,
कुत्ता सुनने से डरता है |
धन्य है वो जो स्वामिभक्त ,
अंधे बनकर सब करते है ,
चाटुकार बन दुम हिलाते ,
कुत्तों का मान तो रखते है,
कर पाता जो उनकी पूजा ,
हाथ हमारे दो जो होते ,
आदमियों में कोई है अपना ,
चार पैर हमारे सार्थक होते ...........
आज पता नही क्यों ऐसा लगा कि कुत्ता का भी अपना एक दर्द होता है बस उसकी को उकेरने की कोशिश है ..................