Monday, December 30, 2013

एक बार सोच लो इस शाम में

जो भी पाया था ,
उसके जाने का ,
वक्त आ रहा है ,
संजो भी ना सका ,
अब तो लूटने का ,
मंजर आ रहा है ,
जिंदगी आलोक में है ,
रास्ते अंधेरो में ,
गुजर रहे है ,
साँसे तो चल रही है ,
खुद हर किसी में ,
मौत जी रहे है ,
ये कैसा सिला मिला ,
किसी से मिलने का ,
फिर बिछड़ने का ,
मौका भी मिला तो ,
चार कंधो पर ,
आज संवरने का ,
ये वर्ष जो जा रहा है ,
वो वर्ष जो आ रहा है ,
कोई मुझको पा रहा है ,
कोई मुझसे जा रहा है ,
जीना इसी का नाम है ,
चलना इसी का काम है ,
मुबारक हो साल अब ये ,
कल इसकी आखिरी शाम है ....................आइये सोचे कितने आजीब है हम जो यह नहीं समझ पाते कि हम सिर्फ किसी की तलाश में इस दुनिया में नहीं आये बल्कि दुनिया हमको तलाश रही है ......कुछ करने के लिए कुछ कहने के लिए ...अखिल भारतीय अधिकार संगठन

Sunday, December 29, 2013

जिंदगी कल , आज और कल .नया वर्ष २०१४

पौधे से न जाने कब ,
जिंदगी दरख्त बन गयी ,
किसी के लिए यह ,
ओस कि बूंद सी रही ,
तो किसी के लिए ,
मदहोश सी मिलती  रही
कोई आकर घोसला ,
अपना बना गया ,
कोई मिल कर ,
होसला ही बढ़ा गया ,
किसी को हसी मिली ,
किसी कि सांस खिली ,
कोई जिया ही देखकर ,
कोई आया दिल भेद कर ,
सभी में अपने लिए ,
 तोड़ने , मोड़ने , छूने ,
छाया पाने की ललक दिखी ,
किसी ने फूल समझा ,
तो किसी ने कलम बना ,
अपनी ही इबारत लिखी ,
सभी को आलोक मिला ,
पर आलोक का गिला ,
अँधेरे से सब डरते रहे ,
मौत से ही मरते रहे ,
कोई नहीं दिखा आलोक में ,
जोड़ी बनती है परलोक में ,
आलोक पूरा हुआ अँधेरे से ,
रात पूरी होगी सबेरे से ,
आइये चलते रहे दरख्त ,
बनने की इस कहानी में ,
फूल पत्ती शाखो से ,
महकते रहे जवानी में ......................अखिल भारतीय अधिकार संगठन आप सभी को जिंदगी के मायने समझते हुए एक नए कल की शुभ कामनाये प्रेषित करता है ............

Friday, December 27, 2013

क्या आये हो यहाँ ???

तुम समझ ही ना पाये ,
कि हम यहाँ क्यों आये ?
बस समझते रहे ,
सुबह से शाम तक ,
जिन्दा रहने को ,
आखिर किससे कहे ,
यूँ तो मानते हो ,
तुम कुछ अलग हो ,
उन सब से ज्यादा ही ,
पर वो भी भाग रहे ,
तुम भी भाग रहे ,
जानवरो से ज्यादा ही ,
क्या आलोक नहीं है ,
जिंदगी में तुम्हारी ,
पीछे क्या रह जायेगा ,
जिंदगी के बाद हमारी ..................अखिल भारतीय अधिकार संगठन

Thursday, December 26, 2013

उम्र और मैं

मैं जिसको उस मोड़ पर ,
मानो ना मानो ,
छोड़ आया हूँ ,
और कुछ भी नहीं बस ,
वो मेरा कल जिसे ,
उम्र बना लाया हूँ |
लोग कहते है अब मुझे ,
कुछ बदल से गए हो ,
आलोक इस तरह ,
क्या कहूं उनसे भी ,
कुछ भी नहीं बदला ,
सिवा इस उम्र की तरह .............अखिल भारतीय अधिकार संगठन

उम्र और जवानी

जिस उम्र को लाद,
तू घूम रहा है ,
जिन साँसों को ले ,
तू झूम रहा है ,
पता नहीं कितनी ,
पुरानी हो चली है ,
फिर भी गूदरों में ,
तू जवानी ढूंढ रहा है ........अखिल भारतीय अधिकार संगठन की तरफ से एक प्रयास