Thursday, August 30, 2012

mohabbt tujhe ho gai hai

न जाने कितनी आँखे रोती रही ,
और मौत मेरे संग सोती रही ,
कब पसंद आई मोहब्बत उनको ,
तन्हाई कमरे में अब होती रही ,
कितने बेदर्दी से निकाला घर से ,
सांस न जाने कहाँ खोती रही ,
मेरी प्रेम कहानी का अंत देखो ,
मौत जल कर जिन्दगी ढोती रही ,
मेरी राख को भी नदी में बहा कर ,
मिटटी में कोई बीज फिर बोती रही,
ये क्या आलोक को सिला मिला उनसे ,
मौत को देख उनकी मौत होती रही ,................शुभ रात्रि 

Wednesday, August 29, 2012

mohabbt

आज फिर क्यों आँखे नम है ,
भीड़ में कोई चेहरा कम है ,
कितना भीगा आलोक से जीवन ,
फिर भी अंतस में क्यों तम है ,
रोज नींद कहकर क्यों सुलाती ,
मौत बता तुझको क्या गम है ,
कल तक दो जीवन जो साथ रहे ,
ठहाको में उनके भी सम है ,
कहा छीन कर ले गई आज तू ,
जब दो शरीर में एक ही हम है ,
इतना सन्नाटा उसको क्यों पाकर ,
लाश को पा मौत अब गई थम है .....................शुभ रात्रि

Tuesday, August 28, 2012

mai ho to hun charo tarf tere

जीवन जितने भी अर्थो में रही ,
मौत का ही विकल्प था सही ,
साँसे न जाने कहा कहा घूमी ,
पर थक कर ना कही की रही ,
कितने दिनों तक क्या ना कहा ,
पर वो आवाज़ है ही नही कही ,
एक तस्वीर भी जो बसी मन में ,
चिता ने  उसको भी छोड़ा नही ,
इतनी नफरत क्यों जिन्दगी से ,
मौत कहूँ तो तू नाराज तो नहीं ......................शुभ रात्रि

Monday, August 27, 2012

mujhe tumse mohhabt ho gai hai

कितनी शिद्दत से इंतज़ार किया तूने मेरा ,
देख तेरी खातिर जिन्दगी को छोड़ आया ,
बंद आँखों में है भी तो सिर्फ तस्सवुर तेरा ,
मौत हर शख्स को सुकून तुझमे ही आया ,
अब तो खुश हो जा मै किसी को न देखता ,
हर किसी से दूर सिर्फ तेरा गुलाम बना गया ,
कमरे  में मेरी जगह रहती अब खाली खाली ,
सच मान मैं शमशान में तेरे ही लिए बस गया ...............शुभ रात्रि

Monday, August 20, 2012

samajik janwar manushya

तन्हाई से निकल कभी जब शोर का आंचल पाता हूँ ,
 समंदर की लहरों सा विचिलित खुद को ही पाता हूँ ,
निरे शाम में डूबे शून्य को पश्चिम तक ले जाता हूँ ,
भोर की लाली पूरब की खातिर भी मैं  ले आता हूँ ,
पर जाने क्यों मन का आंगन सूना सूना नहाता है ,
पंखुडिया से सजे सेज तन मन  को कहा सुहाता है ,
तुम नीर भरी दुःख की बदरी मै बदरी ने नाता हूँ ,
तेरे जाने की बात को सुन  कफ़न बना मै जाता हूँ ,
एक दिन न जाने क्यों आने का मन फिर करेगा ,
पर क्या जाने भगवन मेरे दिल उसका कब हरेगा ,
मौत यही नाम है उसका आलोक के साथ मिली है ,
जिन्दगी की तन्हाई से अब तो साँसों का तार तरेगा ,................................जितना पशुओ का समूह एक साथ दिखाई देता है और जब कोई हिंसक पशु आक्रमण करता है तो सब अपनी जान बचने में लगे रहते है .वैसे ही आज के दौर में मनुष्य देखने में सबके साथ है पर अपनी जिन्दगी की हिंसक ( भूख , प्यास , महंगाई , बेरोजगारी , आतंकवाद ) स्थिति आने पर वह बिलकुल ही अकेला होता है ...................सच में मनुष्य एक सामजिक जानवर से ऊपर नही .....................

Sunday, August 12, 2012

adhikar kab milega

मेरी मौत के बाद जब खाना मिलेगा ,
कोई भूखा हो उसका ओठ खिलेगा ,
जिन्दा में मैं खुद ठोकर खाता रहा ,
मरने पर कोई चार कंधे पर चलेगा ,
भगवान के नाम पर  नंगे को देखो ,
छाती की हड्डी देख दिल तक हिलेगा ,
भगवान की मर्जी का कैसा ये खेल ,
बंद दरवाजे का राज कब तक खुलेगा ,
किसी तरह जी ले पशु से इतर हम ,
ये अधिकार हमको कब तक मिलेगा |....................हम सब भगवान पर इतना भरोसा करते है कि मनुष्य होकर भी हम पशु की तरह मर जाते है .पर हम कहा यह समझ पाते हैं कि मानव के उन रूपों का भगवान क्यों साथ दे रहा है जो रावन है .क्या आपको अपने अधिकार के लिए नही लड़ना चाहिए ,डॉ आलोक चान्टिया , अखिल भारतीय अधिकार संतान ,

Saturday, August 11, 2012

ghar ka chulha jalta

हर कोई मेरी आँखों का पानी छीनता रहा ,
फिर हस उनको ही मेरे आंसू कहता रहा ,
पहले तिल तिल कर जलाता रहा  मुझको ,
लाश कह कर मुझको मिटटी में मिलाता रहा ,
बेवजह अपनी ख़ुशी में मुझको जला डाला ,
उन लकड़ी से किसी के घर का चूल्हा जलता ,
आलोक ढूंढा भी तो चिता की उठती आग में ,
पूरब को देख लेता तो मैं रोज वही मिलता ............................क्यों हम ऐसा कर रहे हैं  क्यों हम एक दूसरे के लिए जीने की बात करके सिर्फ छलते है .जिन्दा आदमी को लाश बना देता है और हर आशा को मार देते है ...क्या यही भाई चारा है हमारा ..................डॉ आलोक चान्टिया , अखिल भारतीय अधिकार संगठन

mujhe lash hi samjh lo

मौत अपनी जिन्दगी मुझमे तलाशती रही ,
अँधेरे की आरजू रौशनी को निहारती रही ,
रुक गए कदम शमशान की तरफ जाकर ,
कोई नही था साये को आँख पुकारती रही ,
आलोक कब आलोक का मतलब समझा है ,
चिराग के नीचे जिन्दगी धिक्कारती रही,
अब तो कोई बढ़ कर ऊँगली पकड़ ले मेरी  ,
गिर कर गिराने की आरजू क्यों सजाती रही,
एक दिन न चाहने वाली मंजिल आ जाएगी ,
क्यों जिन्दगी ही तिल तिल करके मारती रही ......................................जब भी जिसके लिए जीने का मन करे तो पुरे मन से जिए .......क्योकि लाश भी चार कंधो पर ऐतबार करके शमशान तक पहुच जाती है ...........तो जिन्दा आदमी के साथ दगा क्यों ?????????????????डॉ आलोक चान्टिया , अखिल भारतीय अधिकार संगठन ,

Saturday, August 4, 2012

kash meri dist ban jati

ऐसा नही कि तेरे सीने मे दिल नही ,
पर दिल में भी दिमाग है ,
और ऐसा भी नही कि सीने में आग नही ,
पर तेरी आँखों में हया का दाग ,
बढ़ कर कैसे कह दे मै तेरा दोस्त हूँ ,
 इस देश में दोस्त ही हमराज है ,
मान भी जाऊ अगर तेरी इन बातो को ,
तन्हाई में साँसों की अपनी कुछ बात है ,
आओ सुना दू तेरे दिमाग को दिल के शब्द ,
सच मानो आज हो जाओगी निः शब्द  ,
दोस्त कहने में इतनी देर लगा दी तुमने ,
देखो मेरी  चिता में आग खुद लगा दी तुमने .............................क्या आप ही मेरे दोस्त नही है

murda nhi hilta hai

कौन कहता है मरने के बाद स्वर्ग ही मिलता है ,
नरक की तरह जीने वालो का नसीब चलता है ,
मेरी न मानो तो जाकर शमशान को देख लो ,
मुर्दा  कब जल कर भी आलोक कभी हिलता है ................. क्या आप जिन्दा है तो स्वर्ग आप यही बना सकते है ...............नरक तो बना ही ????????????????/ डॉ आलोक चान्टिया , अखिल भारतीय अधिकार संगठन