कितना तनहा दिखा फूल ,
डाली पे खिल कर भी ,
किसी ने तोड़ लिया ,
किसी ने उफ़ तक न की ,
सभी को चाहत उसे ,
अपने दमन में पिरोने की ,
उसके घर में भी मातम ,
पर किसी ने आह तक न की ,
है सूनी सूनी हर डाली उसकी ,
हर पाती अनाथ सी दिखी ,
उजड़ा सिंदूर मांग से पौधे का ,
किसी को फ़िक्र न रही अश्को की
डाली पे खिल कर भी ,
किसी ने तोड़ लिया ,
किसी ने उफ़ तक न की ,
सभी को चाहत उसे ,
अपने दमन में पिरोने की ,
उसके घर में भी मातम ,
पर किसी ने आह तक न की ,
है सूनी सूनी हर डाली उसकी ,
हर पाती अनाथ सी दिखी ,
उजड़ा सिंदूर मांग से पौधे का ,
किसी को फ़िक्र न रही अश्को की
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