Tuesday, January 31, 2012

kya hai sach

जिन्दगी मौत के मानिंद छिपी छिपी सी रही ,
दुनिया में जब दिखी भी तो घुंघरू बन कर ,
हर सांस हारती रही खुद जिन्दगी के लिए ,
अँधेरे से हो आई फिर किलकारी  बनकर ,
आलोक क्यों है जुदा सबकी मंजिले फिर ,
जब आये थे हम सभी आदमी ही बन कर ...............बढ़ते अँधेरे में कल सुबह होने का तस्वुवुर लेकर आइये हम पूरब की तरफ एक बार हसरत से देख ले ..........शुभ रात्रि ....

Monday, January 30, 2012

MAUT aur Phul

क्यों महक रही हो इस कदर मेरी जिन्दगी में तुम ,
चमेली कह दूंगा तो गुनाह होगा मेरे लिए लिए ,
तुम बन कर क्यों रही पाई उस जंगली फूल सी ,
जी भी लेती जी भर कर जानवर के साथ ही सही ,
अब देखो जिसे वो ही तुम्हारे महक का प्यासा है ,
क्या अभी भी डाली से जुड़े रह जाने की आशा है ,
आज तक न जान पाई आदमी की फितरत आलोक ,
उसे हर महक , सुन्दरता को देख होती हताशा है ,
मुझे दर्द है कि तेरी मौत पर कभी कोई न रोयेगा ,
तेरी हर बर्बादी में बस संग एक कांटा भी खोएगा ..........मौत के अंधकार से निकल कर जिन्दगी आपसे कह रही है आप सभी को सूरज कि रौशनी मुबारक ...........सुप्रभात

manav kyo manav pyasa hai

श्मशान में खड़ा मै,
रागिनी गा रहा हूँ ,
मौत को सुना कर ,
अभी लोरी आ रहा हूँ ,
जान कर भी बहरे ,
क्यों बने जा रहे हो ,
कोई आदमी तडपता,
नही देख पा रहे हो ,
मेरी मौत की दावत ,
हो तुम्हे ही मुबारक ,
आलोक का जनाजा ,
लिए कहा जा रहे हो ,
देख मुझको जिन्दा,
क्यों मरे जा रहे हो ,
.......................काश मानव शास्त्र में मनुष्य बनाने के तरीके भी पढाये जाते .............

Monday, January 23, 2012

mat ka maan

दरकती जमी में ,
पौधे की चाहत ,
जिन्दगी की रही ,
एक आँख शायद ,
यह समझ सी गई ,
कुछ ही पल में ,
दर्द देख उसका ,
छलक सी गई ,
आंसू गिर गया ,
उसकी जडो पर ,
पौधा देख बोला ,
खारा ही सही ,
आंख की एक ,
बूंद हिस्से में रही ,
पर पानी तो मिला ,
इस दर्द में कोई ,
अपना तो मिला ,
फूल खिले न खिले ,
पर दिल तो खिला,
जिन्दा रहते में ही ,
एक आंसू तो चला ,
तुम आदमी हो पर ,
मुझ पर क्यों रोये ,
अपनों के लिए तुमने ,
कांटे ही क्यों बोये ,
हसे उनकी बर्बादी पे,
उनके लिए क्यों रहे सोये ,
खारा ही सही उन्हें  भी ,
आँखों में पानी दिखा दो ,
एक बार इस देश को,
जीने का अर्थ सीखा दो ,
अंधेरो से निकाल लो सबको ,
आलोक का भावार्थ बता दो  ............अखिल भारतए अधिकार संगठन ने इस कविता में सिर्फ यही समझाने का प्रयास किया है कि हमको पौधे के सूखने का ख्याल रहता है , दर्द रहता है ..पर जो देश के लोग अशिक्षा , गरीबी, अंधेरो में जी रहे है उनके लिए भी आंख में दर्द होना चाहिए और हमने जिनको देश सौपने का मन बनाया है वो इस तरह के लोग हो जो हमारे जीवन से अँधेरा मिटाए ....इस लिए मतदान करे .अभिमान करे ...मतदान का मान तिरंगे कि शान ....डॉ आलोक चान्टिया
अपना

sach ke raste

सच के रास्तो पर वो ,
इस कदर चलने लगे है ,
कि अब तो कह कर ,
हर गुनाह करने लगे है ................सुप्रभात भारत ...आइये इस पंक्ति का दर्द समझ कर अपने मत से देश की तस्वीर ऐसी बांये जैसी अखिल भारतीय अधिकार संगठन चाहता है

Saturday, January 21, 2012

mat ki takat

ठण्ड से हारती धूप देख लीजिये ,
हर जुल्मो सितम पर रहम कीजिये ,
आज भी सोया पुल पर एक आदमी,
उसको भी अपना आलोक कह लीजिये  ,
माना कि नेता आप बन गए हमारे ,
फिर भी आदमी होने का वहम कीजिये,
मत देकर कोई हमने गुनाह न किया ,
हमे लूटने पर थोडा तो शर्म कीजिये ,
वक्त बदलते ना लगती देर मालूम है ,
हर लम्हे से अब थोडा डरा कीजिये ,
वो देखिये फिर चला देश का आदमी ,
उसको दिल्ली का तख़्त अब दे दीजिये ,
हारे खड़े खुद अपनी करनी के कारण,
पांच सालो की मस्ती याद कर लीजिये ,
कितना रोया था मै तेरे दरवाजे पर आकर,
उन अश्को से तौबा अब तो कर लीजिये ,......akhil bhartiye adhikar sangthan ki tarf se dr alok chantia ki rachna

sach ko aanch nhi

जो हाथ गुलाब खिला लेते है ,
वो काँटों को भी जी लेते है
अंधेरो से क्यों डरे वो आलोक ,
जो बाघ के भी दांत गिन लेते है .......अखिल भारतीय अधिकार संगठन उन सब से पूछना चाहता है जो हर सही रास्ते पर चलने वालो को यही समझाता है कि मेरा प्रयास धक् तीन के पात ही है ,

Friday, January 20, 2012

mat ke liye jago

माना की वो मुझको गोली मार देंगे लेकिन ,
उन शब्दों का क्या जो बारूद बन गए है ,
वक्त अब भी है संभल जाओ देश के गद्दारों ,
वरना तुम्हारे सोने के भी ताबूत बन गए है ..........अखिल भारतीय  अधिकार संगठन  का सुप्रभात .....इस आशा के साथ कि अपने मतों से हम भारत कि तस्वीर बदल देंगे ........

matadhikar .......akhil bhartiye adhikar sangthan ki prastuti

मताधिकार ......मताधिकार
प्रजातंत्र का देखो ये ,
अद्भुत सा हथियार
देश को हम बदल देंगे ,
विकास पे हम फिर चल देंगे ,
 डाल के मत को  बदल डालो
राजनीती इस बार
मताधिकार मताधिकार .....
आप भी आकर मत डालो
हम भी आकर मत डाले
आस पड़ोस से कह दो निकलो,
छोड़ के घर बार ,
मताधिकार ...मताधिकार .....
बूंद बूंद से घट है भरता ,
हर एक मत से समाज है बनता ,
राम राज्य का मत  से कर दो
सपना फिर साकार ...
मताधिकार ..मताधिकार ....
यथा राजा तथा प्रजा ,
यथा भूमि  तथा तोयम
आपका  मत बना देगा 
जनता की सरकार
मताधिकार मताधिकार

Thursday, January 19, 2012

phool aur aurat

कितना तनहा दिखा फूल ,
डाली पे खिल कर भी ,
किसी ने तोड़ लिया ,
किसी ने उफ़ तक न की ,
सभी को चाहत उसे ,
अपने दमन में पिरोने की ,
उसके घर में भी मातम ,
पर किसी ने आह तक न की ,
है सूनी सूनी हर डाली उसकी ,
हर पाती अनाथ  सी दिखी ,
उजड़ा सिंदूर मांग से पौधे का ,
किसी को फ़िक्र न रही अश्को की

Wednesday, January 18, 2012

sannata ki awaz

कभी कभी मन भी हस लेता है ,
कोई ओठो में बस लेता है ,
पर कौन देखता इन आँखों में ,
जो सन्नाटो को भर लेता है ,
हर तरफ हाथो की हल चल ,
कोई पैरो में कुचल लेता है ,
ऐसे तो आलोक है अंधरे में भी ,
पर कौन पश्चिम को वर लेता है ,
चल कर जिन्होंने देखा नंगे पांव ,
वही काँटों से मोहब्बत कर लेता है ,
उनको मालूम है जीवन का मतलब ,
जो एक बार मौत को जी लेता है ,
क्या चलोगी और जिन्दगी यू ही ,
जब मन ओठो का नाम पी लेता है

Monday, January 16, 2012

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विकास का भारत .......राजनीति के आईने में


सड़क के किनारे ,
भारत माँ चिथड़ो में लिपटी ,
इक्कीसवी सदी में जा रहे देश को दे रही चुनौती ,
खाने को न रोटी ,
पहनने को न धोती ,
है तो उसके हाथ में कटोरा वही ,
जिससे झलकती है प्रगति की पोथी सभी ,
किन्तु
हर वर्ष होता है ब्योरो का विकास ,
हमने इतनो को बांटी रोटी ,
और कितनो को आवास ,
लेकिन
आज भी है उसे अपने कटोरे से आस ,
जो शाम को जुटाएगा ,
एक रोटी ,
और तन को चिथड़ी धोती ,
पर ,
लाल किले से आयगी यही एक आवाज़ ,
हमने इस वर्ष किया चहुमुखी विकास
हमने इस वर्ष किया चहुमुखी विकास

Saturday, January 14, 2012

tum purab ke ban jao

मै पश्चिम का सूरज हूँ ,
तुम पूरब के बन जाओ ,
मै निस्तेज तिमिर का वाहक ,
तुम पथ के दीपक बन जाओ ,
मै और तुम दोनों है रक्तिम ,
अंतर बस इतना पता हूँ ,
तुम उगने का अर्थ लिए ,
मै उगने की राह  बनाता हूँ
....डॉ आलोक चांटिया  "महा -रज"