Sunday, May 14, 2023

अपने बीजों की तरह...... एक कविता


 बार-बार फूल और कांटे 

पेड़ों के नीचे बैठकर परिंदे 

हमें यह सिखा रहे हैं 

क्यों मानव होकर हम 

दुनिया से जिंदगी का 

नामोनिशान मिटा रहे हैं 

मनोरंजन के खातिर 

जब बर्बाद कर देते हो 

करोड़ों अपने बीजों को 

वैसे ही हंसी खेल में 

एक बीज दरख़्त का 

क्यों नहीं लगा रहे हो 

आलोक चांटिया

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