Tuesday, March 11, 2014

जिंदगी

जिंदगी .......
ये बात ही अजीब थी ,
कहते है वो करीब थी ,
चली गयी मैं आज भी ,
मुर्दे का वो नसीब  थी ,
चलती रही उम्र भर ,
पर हुई वो रकीब थी ,
जिंदगी चली ही गयी ,
मौत की ही वो हबीब थी ,
अँधेरे में रह कर ही वो  ,
आलोक से मिली थी ,
दुनिया कहते है किसे  ,
यही उसकी अदीब थी

Saturday, March 8, 2014

रोटी कि लालच और औरत का गौरव

डर गया चंद नौकरी से ,
मैं ही  वो आलोक हूँ ,
जानवरों के बीच बैठा ,
मैं खुद अभिशाप हूँ ,
विश्वास न हो तो पूछो ,
उन बेटी के दलालो से ,
जिनके घर बच रहे है ,
मालिको के हालो से ,
कहते झुक क्यों ना जाते ,
जीवन सुख से कट जायेगा ,
कैसे कहूं इन श्वानो से ,
मानव कौन कहने आएगा ,
कब तक बचाओगे रावण को ,
सीता का हक़ जमीन पायेगा ,
काट डालो उन हाथो को ,
जो लड़की पर उठ जायेगा ,
कभी खुद न देखना बेटी अपनी ,
उसका दिल सिहर जायेगा ,
आलोक तो जी गया अँधेरे में ,
पर तू मुट्ठी में क्या पायेगा  ,....................लड़की और औरत के साथ होने वाली हिंसा के बाद उनके शोषण से क्या मिल रहा है देश के सफेदपोशो को , जागो और खुद की बेटी को सामने रखकर शर्म करो अपने कृत्य पर , आज मन बहुत दुखी है काश ????????????????????


Friday, March 7, 2014

औऱत और महिला दिवस

मैं  जन्मा या अजन्मा ,
यह निर्णय तेरा होगा ,
औरत सोच के देख जरा ,
तुझमे साहस कितना होगा ,
हर कदम उम्र पुरषो के नीचे ,
तेरा क्षमा सहन कितना होगा ,
तुझ पर कह डाली पोथी सारी,
शून्य में फिर भी रहना होगा ,
कहती दुनिया कल दिन है तेरा .
फिर भी डर कर रहना होगा ,
आलोक ढूंढती आँखे अबभी है ,
अँधेरा खुद तुझे पीना होगा ,
माँ बहन शब्द दम तोड़ चुके ,
हव्वा आदम की होना होगा ,
भूल न जाना, है दर्द अंतहीन,
बेशर्मो संग ही रहना होगा ,
दुनिया में खुद आने के खातिर,
माँ माँ इनको ही कहना होगा ,
शत शत वंदन तेरे हर रूप को ,
ये प्रेम किसी से कहना होगा ..................
अजीब लगता है जब यह लाइन लिख रहा हूँ क्योकि औरत के लिए हमारी कथनी करनी अलग है और कल हर कोई छाती पीट पीट कर महिला दिवस पर पाने गले को बुलंद करेगा .....पर शत शत अभिनन्दन उस हर महिला को जो चुपचाप पुरुष को जैम से मृत्यु तक साथ देकर गुमनामी में मर जाती है .............





Tuesday, March 4, 2014

paisa hi sab kuchh hai

मैं पैसे के पीछे भाग रहा था ,
हर पल जैसे भाग रहा था ,
रात रात क्यों जाग रहा था ,
पैसा फिर भी भाग रहा था ,
वो पीछे पीछे कभी मैं आगे ,
कभी वो आगे हम अभागे ,
मैं दौड़ता रहा वो दौड़ाता रहा ,
न वो रुका न मैं ही रुका ,
पर अब न वो भाग रहा था ,
और ना ही अब जाग रहा था ,
बाल सफ़ेद थे , सफ़ेद था चेहरा ,
नहीं कही था जीवन का सेहरा ,
रंग बिरंगे कपडे सफ़ेद हो ,
थक गए थे कुछ लोग रो रो ,
अब पैसा खड़ा श्मशान में ,
मेरे जल जाने  की मांग में ,
क्यों कहते हो कुछ नहीं है ,
पैसे से ही सब जीते शान में ,
क्या मिल जायेगा आलोक ,
अँधेरे के सिवा सब है दाम में ....................

delf finance teacher ko samarpit

देश भर में स्ववित्तपोषित शिक्षको को समर्पित जो सरकार  द्वारा शोषण का शिकार है ................
वो नोंच लेते है कफ़न मेरा ,
अपने बच्चो को पहनाने को ,
खाली थाली हमको मिलती ,
रोटी उनको मिलती खाने को ,
बूंद बूंद कर हम संजोते ,
वो रोज ही जाते मैखाने को ,
कल गरीब था आज भी है ,
शिक्षक तार तार जी जाने को ,
फैलेगा क्या आलोक कभी ,
या अँधेरा ही है आने को .................