Monday, May 28, 2012

tamas ka vikalp

तमस से निकलने का रास्ता ढूंढा सबने ,
नींद  कहकर आँख बंद कर ली सबने ,
कहने की  जरूरत आलोक का मतलब ,
जीवन कह कर कर्म किया फिर सबने ........................अखिल भारतीय अधिकार संगठन का नमन और सुप्रभात

garmi ka prem

गरम हवाओ ने रात को जगा दिया ,
पता नही कहा नींद को भगा दिया ,
सभी झाकते रहे सुबह की तलाश में ,
ना जाने जेठ ने ये कैसा जादू किया .....................गर्मी से हम सब ऊबे है और थोड़ी ठंडक की तलाश है पर गर्म हवाओ ने कुछ ऐसा किया किया की सुबह की तपिश ही अच्छी लगती है रात से |  अखिल भारतीय अधिकार संगठन आपके अच्छे स्वस्थ्य की कामना करता है } शुभ रात्रि

Sunday, May 27, 2012

suprabhat

चिलकती जिन्दगी का साथ पूरब देगी ,
दहकती सड़के फिर कदमो के साथ होगी ,
पर हौसला देखिये इन साँसों का आलोक ,
शाम से पहले घरो में न रु बरु कभी होगी .........................आप सभी अपना ध्यान रखिये क्योकि सुबह का सूरज भी अपने भाव पर है , सिर्फ एक दाना हरी मिर्च का दाना खाकर निकालिए और रहिये  पूरे दिन दिन लू से दूर ................सुप्रभात | अखिल भारतीय अधिकार संगठन

sapno ke par

किलकती जिन्दगी में बिलखती आरजू ,
मैंने अक्सर साँसों को कहते देखा है ,
आसमान छू लेने की तमन्ना करते कदम ,
मैंने ख्वाबो में कितनो को उड़ते देखा है |.................अखिल भारतीय अधिकार संगठन आपके साथ हकीकत की धरती पर अपने को साबित करने के लिए करने को तत्पर ...........शुभ रात्रि

Saturday, May 26, 2012

purab se pratyogita

इतना आसान नही सुबह के मर्म को जान लेना ,
सूरज है मेरा ही आलोक को अपना मान लेना ,
पर चल पड़ना उसके साथ विवशता है तुम्हारी ,
विकल्प ढूंढ़ कर दिखा दोगे पूरब से ठान लेना ...........सुप्रभात प्रिय भारत आईये आज के दिन में कुछ ऐसा कर दिखाए की यह पर्थिवी पर सब जीव जंतु हमारे मानव होने पर फक्र करे | अखिल भारतीय अधिकार संगठन

shubh ratri

मै जनता हूँ ये जिन्दगी तुझे मोह्हबत नही है मुझसे फिर भी ,
पर क्या करू आलोक नाम दिया है तो तपने की आदत डाल लो ,
भले ही तू खुद छाव की तलाश में भटकती रहती दिन भर ,
पर न जाने कितनो के जीने की आरजू हो ये भी तो मान लो .............................शुभ रात्रि भारत अखिल भारतीय अधिकार संगठन

Saturday, May 12, 2012

maa

शत शत अभिनन्दन ,
तेरे इस नंदन का ,
स्वीकार करो वंदन ,
ये माँ महिषासुर मर्दन ,
तेरी कोख के हम सब ,
पुष्प सुवासित इस जग में ,
रब होता है कैसा ,
माँ से जाना  हम सब ने ,
माँ होकर दर्द हमारे समझे
पृथ्वी को दे दिया उन पहलुओ के लिए ,
जिनके दर्द  है अनबूझे,
आज तेरा दिवस मना कर ,
मानव क्या हो पायेगा ,
उन कर्जो से मुक्त कभी ,
जिनको अपने रक्त  दूध से सीच ,
तूने पूरब  का उजाला दिया ,
और हस्ते है हम सभी ....
पूरे विश्व की माओं को अखिल भारतीय अधिकार संगठन अभिनन्दन करता है यह अभिनन्दन सिर्फ इस लिए नही कि हम ने अपनी माँ को याद किया है बल्कि इस लिए भी क्योकि उस माँ के लिए मई कभी रात में नही जगा , उसके लिए कभी खाना नही बनाया , रिश्तो में जिस रिश्ते से सबसे ज्यादा झगडा हम करते है वह है हमारी माँ ..फिर भी वह इंतज़ार में रहती है कि मुझे भूख लगी होगी , उसके प्रेम से ज्यादातर हम झुंझला उठते है जब वह प्रेम से बालो में हाथ फिरती है जबकि हम चाहते है कि एक लड़की हमारे इर्द गिर्द रहे , वह हमसे पहले उठती है और मुझसे बाद में सोती है , परिवार के लिए ख़ुशी देने के लिए वक्ष कैंसर , सर्विकल कैंसर का दर्द बर्दाह्स्त करने वाली माँ को क्या शब्दों में आँका जा सकता है क्या इन दो शब्दों को कहकर हम भाग सकते है , नही ....एक दिन आप भी अपनी माँ के लिए कुछ भी बनाइए , उसका सर दबाइए और एक गिलास पानी दीजिये और आज सोचये कि आप ने अपनी माँ अंतिम बार पानी कब दिया था ???????? आइये हम सब अपनी माँ के लिए संवेदन शील बने .....काश मै माँ के किसी एक गुण को जी पाता....आपको अभिनन्दन माँ .......आज मै अपना नाम नही लिखना चाहता क्योकि यह बात मै विश्व के हर पुत्र की तरफ से लिख रहा हूँ

Monday, May 7, 2012

suprabhat

सूरज ने बढ कर क्या हामी भरी ,
पूरब की दिशा शर्म में  लाल  हुई ,
आलोक उठा और दुनिया में नाचा,
स्पर्श गर्म से कदमो में ताल हुई .........................आप सभी को सुप्रभात , अखिल भारतीय अधिकार संगठन

Sunday, May 6, 2012

kilkari ki ibarat

जीवन को इतना समझा ,
कि समझने की बात भूल गया ,
आँखों ने याद दिलाया आलोक ,
फिर अपनी बात ही भूल गया .............१
बरसती क्यों  रही आँखे इतनी ,
आखिर उसने सूखा क्या देख लिया ,
भीगा तन मन दोनों कुछ इतना ,
दिल फिर से कुछ आज भीग लिया ..........२
आज सुना है उनकी रुखसती होगी ,
जिन्दगी आलोक कुछ बेरुखी होगी ,
सर कभी कंधे पर न रख सका जिनके ,
उन्ही के दिल में मेरी ताज पोशी होगी ------३
मेरी दिल की लाली उनके मांग में दिखी ,
कदमो की आहट उनकी चूडियो ने सीखी  ,
रात  का अँधेरा उनकी बंद आँखों में फैला ,
एक किलकारी की इबारत कुछ ऐसी लिखी -------४

Fate

Fate

kadam bahkte chale gaye

मैंने पुकारा  चला कोई और आया,
दिया मैंने तुमको पर कोई और पाया ,
किस्मत भी न जाने क्या चाहती है ,
बढ़ा  मै पर साथ तेरा कोई और पाया .......१
जो बीत गया उसे याद क्या करूं ,
जो मिला नही उसे प्यार क्या करू ,
जाने क्या बटोरते रहे उम्र भर आलोक ,
जो  रह गया साथ उसे जान क्या करू ..............२
जीने के लिए रोज कोई दर्द होना चाहिए ,
अंतस में कोइ एहसास होना चाहिये ,
कौन जान पाता खुद को आलोक यहा,
सामने कोई आँखों के पास होना चाहिए ,......३
दिल रहा रोशन अँधेरे से घर में ,
सांस रही चलती मुर्दे से तन में ,
मन के हारने से सब हारेगा आलोक ,
कदम बहकते रहे मौत जीवन में .................4

Saturday, May 5, 2012

j chhut gaya whi kaam aaya

तेरे अश्को को मान लिया अपनी चाहत ,
तेरे कदमो  को भी मान लिया अपनी आहट,
अब न जाने और क्या चाहता आलोक ,
उसके हसने में भी रहती अपनी सुगबुगाहट .....१
बहकते है वो जिन्हें  यकीं ही नही खुद पर ,
गिरते है वो जिन्हें जमीं न मिली मर कर ,
मुझे पता है काँटों की चुभन ये आलोक ,
रोते है वो जिन्हें कुछ न मिला जी कर ..........२
तेरे हिस्से मौत न आई मांग कर भी ,
मेरे हिस्से जिन्दगी न आई मर कर भी ,
दोनों को अब न जाने किसका इंतज़ार ,
हसी जाने कहा हो गई हमसे मिलकर ...........३
जो बीत गया अब याद ना आया ,
जो मिल गया उसको भी ना पाया ,
जाने क्या बटोरते रहे उम्र भर हम ,
जो छूटगया वही फिर काम आया .................4

Friday, May 4, 2012

कानपुर यूनिवर्सिटी टीचर्स ब्लॉग असोसिएसन(KANPUR UNIVERSITY TEACHERS BLOG ASSOCIATION): tujhko jina behtar

कानपुर यूनिवर्सिटी टीचर्स ब्लॉग असोसिएसन(KANPUR UNIVERSITY TEACHERS BLOG ASSOCIATION): tujhko jina behtar: रात का डर किसको सुबह की आहट में , मौत का डर किसको तेरी चाहत में , हर इसी को इंतज़ार समय की अंगड़ाई का , पैमाने का डर किसको आँखों की राहत में...

tmeh ina hi behtar

रात का डर किसको सुबह की आहट में ,
मौत का डर किसको तेरी चाहत में ,
हर इसी को इंतज़ार समय की अंगड़ाई का ,
पैमाने का डर किसको आँखों की राहत में  ........१
जब दामन से तन्हाई लिपट जाती है ,
आँखे खुद ब खुद  छलक आती है ,
डरता हूँ कही कोई देख ना ले मुझको  ,
इसी से हसी ओठो पे मचल जाती है ....................२
खो जाना बेहतर है पाने के लिए ,
चले जाना बेहतर फिर आने के लिए ,
सभी में छिपी है रब की एक सूरत ,
तुझको जीना बेहतर उसको पाने के लिए ...........३

tujhko jina behatar

रात का डर किसको सुबह की आहट में ,
मौत का डर किसको तेरी चाहत में ,
हर इसी को इंतज़ार समय की अंगड़ाई का ,
पैमाने का डर किसको आँखों की राहत में  ........१
जब दामन से तन्हाई लिपट जाती है ,
आँखे खुद ब खुद  छलक आती है ,
डरता हूँ कही कोई देख ना ले मुझको  ,
इसी से हसी ओठो पे मचल जाती है ....................२
खो जाना बेहतर है पाने के लिए ,
चले जाना बेहतर फिर आने के लिए ,
सभी में छिपी है रब की एक सूरत ,
तुझको जीना बेहतर उसको पाने के लिए ...........३

dard

दर्द में हसी का तसव्वूर मिलता है ,
बर्बाद होते देख उनको सुकून मिलता है ,
हर मौत पर गमीं के बस चार दिन ,
ठोकर खाकर ही सँभालने को मिलता है