Wednesday, March 28, 2012

ye kaisa bharat hai mera ??????????????

हम भारत के लोग ,
हम भारत के लोग |
जमीं नही इसको हम माने,
माँ कहने का मतलब जाने ,
बटने नही देंगे अब इसको ,
हम भारत के लोग, हम भारत के लोग .....
भाई बहन बन कर हम रहते ,
 दुनिया को भी आपना कहते ,
रिश्तो के खातिर यहा पर ,
पल पल जीते है लोग ..........
हम भारत के लोग ..हम भारत के लोग ...
दुनिया पूरी परिवार सी लगती ,
संस्कृति अनूठी शान है रखती ,
मूल्यों की खातिर यहा पर ,
कट मरते है लोग .....
हम भारत के लोग ...हम भारत के लोग ...
कहा गए वो सब लोग ,
खो क्यों गए वो लोग ,
भटक गए हम सब आज यू,
क्यों भारत के लोग ...
हम भारत के लोग ...हम भारत के लोग ....
इस गीत को लिखते समय मेरे मन में सिर्फ यही ख्याल था कि हम किस भारत की बात करना चाहते है .....डॉ आलोक चांत्टिया

Monday, March 26, 2012

kora

मौत को लेकर चला जिन्दगी कहता रहा ,
उम्र बढती गयी मै जन्मदिन कहता रहा ,
लोग कहते मै आलोक हूँ पर रहता अँधेरा ,
कदम घर की तरफ पर दूर मै होता गया .........................हम जो दिखाना चाहते है वह होता नही और जो होता है वो हम जान पाते .....डॉ आलोक चांत्टिया उम्र के दायरों से घर के दायरे घट गए ,
अपनों के साथ चल कर खुद में सिमट गए ,
न जाने क्यों दिल सुकून नही पाया  घर में ,
किसी अनजाने के साथ कमरे में सिमट गए ...................क्या ऐसा नही है जीवन .....डॉ आलोक चांत्टिया

mera jivan

मौत को लेकर चला जिन्दगी कहता रहा ,
उम्र बढती गयी मै जन्मदिन कहता रहा ,
लोग कहते मै आलोक हूँ पर रहता अँधेरा ,
कदम घर की तरफ पर दूर मै होता गया .........................हम जो दिखाना चाहते है वह होता नही और जो होता है वो हम जान पाते .....डॉ आलोक चांत्टिया

Saturday, March 24, 2012

mera jivan

कैसे देखू बूंद में अपनी कहानी ,
रेत में आती नही नींद सुहानी ,
मेरी साँसों के लिए थपेड़े क्यों
अपने नही दोस्ती भी अनजानी .......................शहर  में भागती दौड़ती जिन्दगी में कौन आपके साथ खड़ा होना चाहता है ....डॉ आलोक चांत्टिया

suprabhat

मेरे हिस्से में राख सही ,
तेरे हिस्से में फूल मिले ,
पग पग पर कांटे हो मेरे ,
हर सुबह तुम्हे मुस्कान मिले ................आप सभी को एक खुबसूरत सुबह का नया आयाम मिले .....डॉ आलोक चांत्टिया

who is man

आदमी को आदमी, आदमी  ने ही कहा,
जानवर को जानवर नाम भी उसी ने दिया ,
मार दुत्कार सह कर भी जानवर चुप रहा ,
आदमी कब मार दुत्कार खाकर जानवर रहा ........हम अपने को आदमी कह कर क्यों फक्र करते है
 डॉ आलोक चांत्तिया

saanp aur aadmi

क्या तुम भी अपने को आदमी मान बैठे ,
ये सांप क्यों चल रहे तुम  इतने ऐंठे ऐंठे ,
माना कि आदमी तुम्हारे जहर से नही डरा,
पर तू  आदमी को कांट के क्यों नही मरा............................क्या आदमी और सांप ने पानी फितरत बदल ली है ....डॉ आलोक चान्त्टिया

Friday, March 23, 2012

khud ko jaan lo

साँसों की बेवफाई जान भी उस से आशनाई है ,
फिर टूटे दिल पर अश्को बाढ़ क्यों अब आई है ,
जिन्दगी जब तुम्हारी ही खुद की ना हो पाई तो ,
दूसरो की जिन्दगी पे क्यों ये कैसी रुसवाई है ..........पहले खुद को समझ लो फिर दूसरो को अपना समझो ...डॉ आलोक चान्टिया

dhikha

मिलती नही है जिन्दगी अब चार दिन की कही,
भरोसा तुम करके चले कही साँसों पर तो नही ,
आदमी से भी ज्यादा मोहब्बत दिखता है दिल ,
बेवफा बन मौन हो जाता है किसी दिन ये यही ..................पता नही हम जिन्दगी से क्या क्या उम्मीद लगा बैठते है ..डॉ आलोक चान्टिया

shat shat naman hai tumko

मै भी कहा सो पाया कल पूरी रात ,
करता ही तो रहा सारी रात बात ,
भगत, सुखदेव राजगुरु सब सुनते रहे,
काश आलोक में शहीद होता उनके साथ ........अखिल भारतीय अधिकार संगठन उन सभी शहीद के आगे शत शत नमन करता है जिन के कारण हा स्वतंत्र भारत में जी रहे है और प्रजातंत्र का मतलब समझ पाए है ..........आइये हम सब फिर धर्म , जाति, लिंग , प्रजाति के आधार पर फिर झगडा करके यह प्रदर्शित करे कि हम शहीदों के बलिदान के प्रति कितने संवेदनशील है

Monday, March 19, 2012

mai kiske sath hu

मेरे दामन को पकड़ कर चले ही क्यों थे, ,
अपनी ऊँगली में हाथ जड़े ही क्यों थे ,
पैर होकर भी निहारते सूने दरवाजे को ,
अपने दिल से दूसरे में  धडके ही क्यों थे??????????? बेसहारे होकर भी हम हर वक्त अपने को न जाने क्यों पूरा समझते है ?         

Sunday, March 18, 2012

mera jivan kora kagaz

जिन्दगी आज कैसा ये  गीत गा रही है ,
शमशान में आरती उतारी जा रही है ,
क्यों है अब जनाजो में ठहाको की मस्ती ,
चार कंधो पे क्या सांस वापस आ रही है ...............क्या आप आपको ऐसा लगता है की हम सब भेद भाव के लिए जिम्मेदार है  www.seminar2012.webs.com

Saturday, March 17, 2012

meri jindgi ka sach

 रोये नही हम आप मेरी हसी को समझ बैठे ,
कब से खामोश है हम आप लोरी समझ बैठे ,
तन्हाई का जाला यू शहनाई सी मयस्सर ,,
सूनी आँखों में देख आप जज्बात समझ बैठे ..............आसान नही है किसी के जीवन को समझना

jindgi

जिन्दगी बड़ी बेतरतीब सी लगती है ,
साँसे अब उसकी नसीब सी लगती है ,
जाने कौन देख रहा मेरी आँखों से ,
हाथो में राख भी हसीन सी लगती है ....................

Thursday, March 15, 2012

mera jivan kora kagaz

शमशान की आग से हिलते बदन को सुकून ,
जिन्दा होने का  एहसास तो आलोक में मिला ,
शहर भर में बदनाम किस घर में करूं बसर ,
खामोश ही सही कई लाशो का साथ तो मिला