Wednesday, June 18, 2014

जीवन किसके साथ

ना जाने लोग कैसे कैसे
भ्रम पाल लेते है ,
कुत्ते की जगह अक्सर ,
आदमी पाल लेते है ,
धोखे खाने के लिए ही ,
रिश्ते जिए जाते है ,
बंद घर में भी जब तब ,
साँप चले आते है,
न चाह कर भी  रोज ,
जानवर में हम जीते है ,
कुछ जीवन कुतर देते है ,
कुछ कीचड़ छोड़ जाते है ...................
कभी आप को सिर्फ निखालिस आदमी मिला जो गंगा सा निर्मल हो ..........या फिर जानवर

Thursday, June 12, 2014

तेरा फरेब

मैं जानता हूँ फितरत
क्या है मेरी खातिर ,
हम उम्र भर जिंदगी ,
के लिए वफ़ा करते है ,
और फिर मौत के लिए ,
मर लिया करते है ,
फिर तुम क्यों मारते हो ,
खंजर पीठ मेरे पीछे ,
 दिल में आकर रह लो ,
धड़कन के पीछे पीछे ,
तुम्हे एतबार नहीं है ,
खुद अपने पैतरे पर ,
हस कर जो मुझसे मिलते ,
राज करते दिल पर ,
मैं जानता था फितरत ,
तेरी लूटने की कबसे ,
ये जिंदगी भी रहती ,
ये लाश कहती है तुझसे .....................
धोखा मत दीजिये क्योकि जीवन अनमोल है किसी को मार कर आप सिर्फ अपने जानवर होने का सबूत देते है

आंसू को क्या मिला

जो आँखे बही ,
कुछ बाते कही ,
मौन के शब्द ,
है दिल स्तब्ध ,
नीरवता की लय ,
ये कैसी पराजय ,
मन है अशांत ,
जैसे गहरा प्रशांत
हिमालय से ऊचे ,
जमीन  के नीचे ,
तड़प है ये कैसी ,
अँधेरे के जैसी ,
समुद्र सिमट आया ,
पा आँख का साया ,
 थे बादल से  सपने ,
हुए ना आज अपने ,
बरसे तो खूब बरसे ,
सन्नाटो के डर से ,
क्यों अकेली आत्मा ,
पूछती परमात्मा ,
कसूर क्या है मेरा ,
चाहा सच का बसेरा ,
रावणो की लंका ,
क्यों न हो आशंका ,
तार तार है सीता ,
 है मन भी आज रीता ,
जब मिला न सहारा ,
तो सब कुछ था हारा,
ज्वार भाटा सा आया ,
जब आँखों का साथ पाया ,
सच निकल पड़ा बूंदबन कर ,
दुनिया के सामने तन कर ,
रोया जब झूठ ही पाया ,
आँखों के हिस्से क्या आया ,
खारा पानी , दर्द ,खुली पलके ,
क्या पाया जिंदगी यूँ जलके ................
जिंदगी में सब सच सामने आता है तो आंसू काफी काम आते है पर आंसू को खुद क्या मिलता है



 ,

Wednesday, June 11, 2014

जिंदगी और मौत

जिंदगी तलाश रहा हूँ ,
तेरे पास आ रहा हूँ ,
कितना सफर है लम्बा ,
न जान पा रहा हूँ ,
कभी धूप की है गर्मी ,
कभी धूप है सुहाती ,
कभी खुद में सिमट कर ,
कभी खुद से बिखर कर ,
बस दौड़ा जा रहा हूँ ,
कभी पास तू है लगती ,
कभी दूर तक न दिखती ,
हर रात रहती आशा ,
साँसों की बन परिभाषा ,
जब खुल कर गगन में ,
उड़ कर जा रहा हूँ ,
तू चील की नजरों से ,
मुझे खोजे जा रही है ,
ये मिलन अधूरा कैसा,
ये सफर कुछ है ऐसा ,
कितना तड़पी जिंदगी है ,
मौत ये कैसी बंदगी है ,
सब जीते आलोक में है ,
अब अँधेरे के लोक में है ,
अब घोसला है खाली,
ये दोनों का मिलन है ,
है जिंदगी एक धोखा ,
ये मौत का जतन है .............
जिंदगी किसी की नहीं पर हम उसे न जाने कितने जतन से जीते है अगर मौत का एहसास कर ले तो कोई क्यों लालच करें ................,
,

Tuesday, June 10, 2014

इनको मनुष्य कब समझोगे

कमरो में पैसो से ,
ठंढी हवा आज पैसे से ,
मिलती है ,
पर झोपडी में किलकारी ,
गर्म हवाओ में ,
झुलसती है ,
सुना तुमने भी है ,
पैसा बहुत कुछ है पर ,
सब कुछ नहीं
भूखे को रोटी मिलती ,
नंगो को कपडा ,
पर सांस तो नहीं ,
गर्मी में जी कर लोग
स्वर्ग नरक का अर्थ ,
जान रहे है ,
नंगे पैरो से सड़क पर ,
दौड़ते जीवन इसे ,
नसीब मान रहे है ,
अपनी सूखी, झूठी रोटी ,
देकर पुण्य का अर्थ ,
पा रहे है लोग  ,
पानी को तरसते ओठ ,
गरीबी और पानी का ,
क्या सिर्फ संजोग
मानिये न मानिये आलोक ,
हवा पानी रौशनी ,
पैसे के सब गुलाम है ,
भूख , प्यास , गर्मी से  ,
बिलबिलाते कीड़े से ,
आदमी गरीबी के नाम है ...........................सोचिये और अपने सुख से थोड़ा सुख उन्हें भी दीजिये जो आपकी ही तरह इस दुनिया में मनुष्य बन कर आये है और आप उनको ??????