Monday, April 30, 2012

mera jivan

रात जैसे  जैसे गहराती गई ,
तारो सी जिन्दगी आती गई ,
सुबह तक सूरज सा चमका ,
सांस  अँधेरे में समाती गई |,
पूरी रात जिसकी बाहों में रहा ,
वही समय अब न जाने कहाँ ,
ढूंढता भी रहा फिर पूरब में ,
वो उम्र का लम्हा फिर  वहां|
मौत की बात करने से डरे ,
फिर भी एक दिन हम मरे ,
सच से भागने  की ये आदत ,
इस झूठ  का हम क्या करें |
रिश्तो के बाज़ार में अकेला ,
फिर भी उसी का हर मेला ,
कोई  क्यों बढ़ कर मिला ,
कोई क्यों भावना से खेला |
जिन्दा रहने पर एक भी नही ,
मरने पर चार कंधे का सहारा ,
कोई भी न बैठा मेरे साथ कभी ,
पर आज था सारा जहाँ हमारा |
एक बूंद में छिपी नदी की कहानी ,
एक आंसू में थी बूंद की जवानी ,
कितना बहूँ की समंदर मिल जाये ,
रास्ते की कसक न होती सुहानी |
आलोक को पाकर चाँद भी चमका ,
तारो का भी कुछ संसार था दमका ,
क्यों फिर भी रहा सफ़र अँधेरे में ,
सपनो में जीकर दिल क्यों छमका |
रेत सा जीवन मुट्ठी में बंद है ,
 जीने के चार दिन भी चंद है ,
हस लो तुम जितना भी चाहो ,
रोने का अपना अलग ही द्वन्द है |

Sunday, April 29, 2012

तुम कह दो तो ......

तुम कह दो तो एक कविता तुम पर लिख दूँ ,
तुम कह दो तो उसमे मन की बात कह दूँ ,
न जाने कितनी तपती रेत गुजरी पैरो  तले,
तुम कह दो तो एक बूंद रहो पानी पर रख दूँ ,
आँखे न बंद करो इतनी बेबसी अब ऐसे आलोक ,
तुम कहो तो सपनो का रंग उनमे भी भर दूँ ,
जब आये ही थे खाली हाथ तो इतना दर्द क्यों ,
तुम कहो तो मुट्ठी में अँधेरा ही बंद कर दूँ ,
जब मिले थे इस दुनिया से क्या याद है तुमको ,
तुम हो तो यादो में नन्हा सा एक झरोखा कर दूँ ,
गुमनाम कौन न हुआ यहा चार कंधो पर चल कर ,
तुम कहो तो आज  बस आंसुओ का बसेरा कर दूँ ,
देखने कहो बस एक बार जी  भर कर मुझे  जिन्दगी ,
तुम कहो तो हर सांस में   आलोक  से सबेरा कर दूँ

Tuesday, April 3, 2012

work

work

kaisa hai jivan

काँटों में भी फूल खिला कर ,
सबको हरसाना आता है ,
फिर तो तुम मानव हो पगले ,
तुम्हे ईश दिखाना आता है |.........१
मै आग सा जीवन लेकर ,
पानी सा जीवन क्यों खत्म,करूं
दूर सही पर आभास आलोक सा ,
मोती , मछली सा क्यों मै मरूँ.....२
आलोक की चाहत सबमे रहती ,
अंधकार समेटे क्यों बैठा है ,
घुट घुट कर आक्रोश सूर्य सा ,
अंतस तेज बन क्यों ऐठा है ,
दूर सही पर प्यारा सा लगता ,
हर सुबह जगाने आता है ,
आलोक न रहता किसी एक का ,
सिर्फ मुट्ठी में अँधेरा पाता है .....३ .....इस का कोई मतलब आपको समझ में आ रहा है .....डॉ आलोक चान्टिया

Monday, April 2, 2012

phul

फूल वही सुंदर कहलाया ,
काँटों को जिसने  गले लगाया ,
उपमा सहस की उसकी गाई,
कीचड़ को जिसने राह बनाई,
क्यों डरते उबड़ खाबड़ रस्तो से ,
बढे चलो आलोक साहस रथ से  .......... जीवन कोई भी अच्छा या ख़राब नही होता है बस हम ही यह नही समझ पाते और दुखी रहते है आइये सुख दुःख के साथ जिए ....डॉ आलोक चान्टिया

phulo sa pyara ho vatan

आओ मिल कर करे जतन,
फूलो सा प्यारा हो वतन ,
हम बढे बढ़ करके छू ले ,
प्रगति के नित नए कदम ..........
बूंद बूंद से घट है भरता ,
कर्म के पथ पर जीवन तरता ,
शस्य श्यामला धरती हो मेरी ,
आओ मिल सब करे चमन ....... यह गीत मैंने १२ नवम्बर २००६ को अखिल भारतीय अधिकार संगठन के ले लक्ष्य गीत के रूप में लिखा था जो हमारी http://www.airo.org.in/ पर पूर्ण उपलब्ध है ....डॉ आलोक चान्त्टिया